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एक शानदार योद्धा की तरफ हारे पुष्कर सिंह धामी

विशेष रिपोर्ट – आशीष तिवारी , देहरादून
पहाड़ के नतीजों ने बता दिया है कि आप भले ही दिग्गज हों ,  आप भले ही मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री हों या फिर बदलाव की शपथ ले रहे हों लेकिन अगर आप  जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं तो लोकतंत्र के सबसे प्रभावी हथ्यार वोट की चोट से आपको यही जनता निष्क्रिय कर देगी। 10 मार्च इतिहास भले ही बना चूका है लेकिन युवा मुख्यमंत्री और खटीमा से उम्मीदवार पुष्कर सिंह धामी की हार ने कहानी में ट्विस्ट ला दिया है।

पुष्कर सिंह धामी सत्ता में रहते हुए चुनाव हारने वाले उत्तराखंड के तीसरे मुख्यमंत्री हो गए हैं। इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था और वह चुनाव हार गए थे। वहीं 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में बीसी खंडूरी के नेतृत्‍व में चुनाव लड़ा गया था, इस दौरान खंडूरी चुनाव हार गए थे।

उत्तराखंड विधानसभा नतीजों ने न सिर्फ पहाड़ को बल्कि देश को चौंका दिया है। कई बड़े उलटफेर के साथ ऐसे नतीजे पहाड़ की  जनता ने ईवीएम के जरिए लोकतंत्र को दिए है। जिसका अब अर्थ लगाया जाए तो यह है कि धनबल और दलबदल को जनता पूरी तरह से नकार रही है।
पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी कई दल बदलू नेताओं को जनता ने घर बिठा दिया तो वही उत्तराखंड में भी यही हाल देखने को मिल रहा है।  हालाकी प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे हरीश रावत को लाल कुआं की जनता ने नकार दिया तो वही मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी खटीमा की जनता ने कुर्सी से उतार दिया।
 चौंकाने वाले ये नतीजे न सिर्फ पहाड़ और देव भूमि की लाखों जनता के लिए आने वाले कल के राजनीतिक भविष्य का संकेत है बल्कि बताता है जोड़-तोड़ धनबल दल बदल से कहीं ऊपर है जनता का मत 
यानी लोकतंत्र में अगर आप नतीजा नहीं देंगे तो जनता आप को वोट और सपोर्ट भी नहीं देगी। खटीमा से विधायक रहे सीएम  पुष्कर सिंह धामी भले ही अब मुख्यमंत्री के दावेदार आसानी से न बन सके , लेकिन छोटी सी इस पारी में उन्होंने अपने बेहतरीन नेतृत्व का मुज़ाहिरा भी जरूर किया। पुष्कर सिंह धामी को भाजपा ने उस वक्त प्रदेश की कमान सौंपी जब प्रदेश में भाजपा के अंदर ही दो-दो मुख्यमंत्री बदलने के बाद अजीबोगरीब हालात पैदा हो गए थे..केंद्र और प्रदेश में तमाम पार्टी नेताओं का सपोर्ट धामी को मिला और धामी बचे हुए समय में न सिर्फ एक अच्छा कार्यकाल चला सके , बल्कि उन्होंने पहाड़ में 2022 का चुनाव भी बेहतरीन ढंग से लड़ा जिसका नतीजा आज पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है। कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि उपचुनाव भी सीएम धामी के लिए एक विकल्प बनाया जा सकता है या फिर पार्टी अब सांसद अनिल बलूनी , केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट या मंत्री सतपाल महाराज के नाम पर विचार करेगा।

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