हमारा हिंदुस्तान विभिन्न जातियों मज़हब और संस्कृतियों के साम्प्रदायिक सौहार्द का संगम है। कदम कदम पर बोली और कुछ फासलों पर खानपान बदल जाता है लेकिन नहीं बदलता तो वो है हमारी एकता और भाईचारे की भावना जिससे महकता है अपना हिन्दुस्तान .
प्रयागराज का मऊ आइमा का इलाका हो या बिहार का गया जिल.बनारस के घाट हों या दिल्ली का गुरुद्वारा अगर विदेशी भी इस धरती पर आकर कुछ सीखता है तो वो है भाईचारे का पैगाम जिसके लिए हमको उन हिन्दुस्तानियों का सम्मान करना चाहिए जो धर्म की दीवाल खड़ी करने की बजाय अपने गैर धर्म के लोगों की खुशियों में , त्यौहार और परम्परा में शामिल होते हैं उनकी मदद करते हैं।
हिन्दुस्तान का कोई भी राज्य हो वहाँ आपको हंदु मुस्लिम एकता के कई मकाम और किरदार मिल जायेंगे ऐसे ही एक जिले की बात हमने इस खबर में बताते की कोशिश की है जो जिला है गया
बिहार का गया जिला हमेशा से गंगा-जमुनी तहजीब का उद्गम स्थल रहा है.यहां मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदाय आपसी भाईचारे के साथ हर त्योहार मनाते हैं. जहां एक तरफ मुस्लिम कारीगर रामनवमी पर झंडा बना रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ, गैर मुस्लिम लोग ईद के मौके पर इससे संबंधित सामानों की बिक्री करते हैं. देश के कई हिस्सों में जहां संघर्ष और हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं वहीं गया के मुस्लिम कारीगर रोजा रखते हुए भी रामनवमी के लिए झंडा तैयार कर रहे हैं.गया शहर का केपी रोड और गोदाम क्षेत्र, व्यावसायिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैंयहां के गोदाम क्षेत्र में मुस्लिम कारिगरों की बहुत कम दुकानें हैं लेकिन वे 60 सालों से रामनवमी के अवसर पर झंडा बनाते आ रहे हैं. यहां के मोहम्मद राशिद ने बताया कि, रमजान और ईद की ही तरह, हमें राम नवमी का भी इंतजार रहता है.लेकिन मजहबी नफरत की खबरों से हमें काफी दुख भी होता है..उन्होंने यह भी बताया कि वह और उनके भाई मोहम्मद सलीम इन झंडों को बनाने का काम 60 सालों से कर रहे हैं.उन्होंने कहा कि कई गैर मुस्लिम दुकानदारों ने इन झंडों को बनाना बंद कर दिया लोग अब भी उनके पास ये झंडे लेने के लिए आते हैं.
ये अलग बात है कि आज हमारे और आपके दरम्यान मौकापरस्त और कुछ नासमझ लोग इस मोहब्बत की खुशबू से हमेशा अनजान ही रहते हैं लेकिन इतना यकीन कर लीजिये कि जो भरा नहीं है भाव से , बहती जिसमें रसधार नहीं – वो मनुष्य नहीं नीरा पशु है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं .