- पिता ने पहली बार अगर किसी डीएम को देखा तो वो थे सचिव पर्यटन सचिन कुर्वे, डीएम हरिद्वार
- डीएम अनुराधा जब मां के गर्भ में थी तो माता मिथलेश को सांप ने काटा, मां बेटी दोनों बच गई
- मां मिथलेश,बेटी की पढ़ाई के लिए पूरे समाज और परिवार से लड़ी,बेटी और अपनी रक्षा के लिए झोले में रखती थी घांस काटने वाले दरांती
- पिता सतीश पाल 20-20 किलोमीटर साइकिल चलाकर दूध इकठ्ठा करके अपना जीवन यापन करते थे और बेटी अनुराधा पूरा हिसाब किताब रखती थी।
- दादी और नानी की चहेती है डीएम अनुराधा
- पंतनगर यूनिवर्सिटी से पढ़ी है,अब छोटा भाई भी वही से तैयारी कर रहा है।
- खेलों में लडको को खूब पछाड़ा डीएम अनुराधा ने
- आईएएस बनने में पति ने की खूब मदद
- माता पिता ने लिया है वादा कि कभी भ्रष्टाचारियों का साथ नही देगी और जरूरतमंदों की मदद करेगी।
- हिंदी मीडियम से आईएएस बनकर हरिद्वार का नाम रोशन किया
मो० सलीम सैफ़ी की विशेष रिपोर्ट
न्यूज़ वायरस नेटवर्क
देहरादून , आज हम आपको एक ऐसी ही बेटी के बारे में बताएंगे जिन्होंने गरीब पिता का सपना पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा पास की। माता-पिता के आर्थिक हालात देखकर उन्होंने कभी भी फीस के पैसे नहीं मांगे। इस आईएएस अधिकारी का नाम अनुराधा पाल है। मुश्किल हालातों और आर्थिक तंगी के बीच उन्होंने यूपीएससी परीक्षा की पढ़ाई की और सफलता हासिल की। कमाल की बात ये है कि उन्होंने पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास की और दूसरे प्रयास में आईएएस अधिकारी बन गईं। अनुराधा पाल की इस कामयाबी के पीछे सबसे बड़ा हाथ उनके माता पिता का है। जिन्होंने हर परेशानी के बावजूद बेटी को पढ़ाया। आइए अनुराधा पाल के माता-पिता से जानते हैं कि अनुराधा को इस मुकाम तक पहुँचाने और बुनियादी सुविधाओं के ना होने के बाद भी अनुराधा ने आईएएस अधिकारी बनने का सफर कैसे तय किया।
हरिद्वार के एक छोटे से गांव की रहने वाली अनुराधा एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती हैं। जिस गांव से में परिवार रहता था वहां बुनियादी सुविधाओं की काफी कमी थी। पिता दूध का काम करते थे। दूध का काम करके जितनी आमदनी होती थी उसे से बच्चों की पढाई तो दूर बल्कि परिवार का चलना भी मुश्किल था।अनुराधा की पाँचवी तक की पढ़ाई गाँव के सरकारी विद्यालय में हुई। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लिहाज़ा माता पिता के सामने अनुराधा की आगे की पढ़ाई कराने का बड़ा संकट खड़ा था। लेकिन अनुराधा की मां मिथिलेश और पिता सतीश पाल ने मन में ठान लिया था कि चाहे जो जाये वो अनुराधा को आगे पढ़ाएंगे। अनुराधा पढाई में अच्छी थी लिहाज़ा नवोदय विद्यालय में दाखिला मिल गया। अनुराधा की पाँचवी कक्षा के आगे की बारहवीं कक्षा की पढ़ाई नवोदय विद्यालय में मुफ़्त हुयी।
अनुराधा पाल ने जब नवोदय विद्यालय से बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी की तो रिश्तेदार हों या फिर गाँव के अन्य लोग सभी अनुराधा के माता पिता को उनकी माली हालत ठीक ना होने के कारण पढ़ाई छूटाने की बात कहते थे। लेकिन माता पिता ने भी ठान लिया था कि चाहे जो हो जाए वो अनुराधा को ज़रूर पढ़ाएँगे। अनुराधा की माँ मिथिलेश ने बच्चों की अच्छी शिक्षा दीक्षा के लिए सिडकुल में बारह साल नौकरी की।
जहाँ उन्हें महंताने के तौर पर सिर्फ़ 1800 रुपये मिलते थे। इन पैसों को मिथिलेश पढ़ाई के लिये जोड़ती थी। मिथिलेश उस वक़्त के बारे में सोचते हुए कहती हैं कि “मैं हमेशा सोचती थी कि अगर मैं नहीं पढ़ सकी तो क्या मगर मैं बच्चों को ज़रूर पढ़ाऊँगी।”
इसके अलावा अनुराधा की मां मिथिलेश ने पति से अलग गाय भैंस का दूध बेचकर लगभग पचास हज़ार रुपय जमा किए। उस जमा रक़म को लेकर मिथिलेश बेटी अनुराधा को इंजीनियरिंग की काउन्सलिंग कराने पंतनगर यूनिवर्सिटी पहुँची। यूनिवर्सिटी में मिथिलेश ने दो साल की फ़ीस जमा कराई। अनुराधा को इंजिनीयरिंग में दाख़िला मिला जहाँ अनुराधा ने ख़ूब दिल लगाकर पढ़ाई की। ये दो साल बीते, फिर फ़ीस जमा कराने का नया संकट सामने खड़ा था। अनुराधा की माता मिथिलेश को किसी से राज्यपाल द्वारा दी जाने वाली स्कलारशिप के बारे में पता चला। जिसके बाद मिथिलेश बेटी अनुराधा के साथ पहली बार देहरादून आए। देहरादून शहर आकर माँ बेटी ने राज्यपाल से मुलाक़ात की। होनहार अनुराधा से मिलकर उस समय राज्यपाल ने आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप को मंज़ूरी दे दी। वो वाक़या बताते हुए अनुराधा की माता मिथिलेश कहती हैं कि जब राज्यपाल ने अनुराधा से पूछा कि “इंजीनियर बनकर क्या करोगी” तो अनुराधा ने जवाब दिया “ मैं घर में सबसे बड़ी हूँ, मेरी मम्मी मुझे पढ़ाने के लिये बहुत मेहनत करती हैं। मेरी मम्मी के पास मुझे पढ़ाने का बजट नहीं है। मैं इंजीनियर बनकर अपने दोनों छोटे भाईयों को पढ़ाऊँगी।”उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई जीबी पंत विश्वविद्यालय से पूरी की. जिस दौरान वो स्नातक में फाइनल ईयर में थी तभी उनका सिलेक्शन एक अच्छी खासी कंपनी में हो गया था. हालांकि अनुराधा ने अपने करियर कि शुरुआत कॉलेज ऑफ टेक्नॉलाजी रुड़की से प्रोफेसर के पद से की थी. यहां उन्होंने 3 साल नौकरी की। आर्थिक तंगी के कारण ही उन्होंने अपने सपनों की तरफ ना जाकर जरूरतों पर ध्यान दिया। यही वजह थी कि उन्होंने ग्रेजुएशन के बाद नौकरी ज्वाइन कर ली।
अनुराधा ने बचपन से ही अपने माता पिता को अपनी पढ़ाई के लिए जूझते देखा था। वो जानती थी कि अगर उसके माता पिता को पढ़ाई के बारे में कुछ पता है तो वो है सबसे बड़ी पढ़ाई आई.ए.एस की पढ़ाई। लेकिन उसको अब भी लगता था कि ये उसकी मंज़िल नहीं है। अब उसे हर वक़्त अपने माता पिता का सपना या यूँ कहें उनके ये शब्द “सबसे बड़ी पढ़ाई” याद आते। हौंसलों से भरपूर अनुराधा अब ठान चुकी थी। नौकरी लगने के कुछ सालों बाद उन्होंने फिर से यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने का विचार किया। अनुराधा ने एक दिन माँ मिथिलेश से कहा कि वो उनका “सबसे बड़ी पढ़ाई” यानि आइ.ए.एस बनने का सपना पूरा करना चाहती है। ये जानकर माँ बेहद ख़ुश हुयी और अपनी रज़ामंदी दे दी। इसके बाद अनुराधा तैयारी के लिए दिल्ली पहुँची और ख़ूब लगन से पढ़ाई की। दिल्ली में उन्होंने कोचिंग पढ़ाना शुरू कर दिया। वो अपने पिता को पैसों को लेकर परेशान नहीं करना चाहती थीं यही से उनकी यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू हो गई।
साल 2012 में अनुराधा ने UPSC की परीक्षा दी और पढ़ाई में तेज होने के कारण वो पहली ही बार में सफल हो गईं। इस परीक्षा में अनुराधा ने 451वीं रैंक हासिल की जिसके बाद IRS पद मिल गया. इस पद पर उन्होंने करीब 2 सालों तक नौकरी की लेकिन अभी भी उन्हें आईएएस अधिकारी बनने का लक्ष्य अधूरा रह रहा था। इसलिए उन्होंने नौकरी के साथ ही यूपीएससी की तैयारी फिर से शुरू कर दी।
दूसरी बार साल 2015 की यूपीएससी परीक्षा में उन्हें सफलता मिल गई. इस परीक्षा में उन्हें पूरे देश में 62वीं रैंक हासिल हुई. रैंक अच्छी आने के कारण उन्हें आईएएस अधिकारी बनने का मौका मिला. उनकी इस सफलता से उन्होंने पूरे परिवार का नाम रोशन कर दिया।अनुराधा पाल के माता पिता आज भी पहले की ही तरह साधारण जीवन व्यतीत करते हैं। पिता सतीश पाल दूध की डेरी चलाते हैं। माँ मिथिलेश घर में पहले की ही तरह सब काम काज करती हैं। अनुराधा के माता पिता दोनों बेटी की कामयाबी पर बेहद ख़ुशी ज़ाहिर करते हैं। अनुराधा के पिता सतीश पाल कहते हैं कि अनुराधा बचपन से ही भाग्यशाली थी। अनुराधा के पिता सतीश पाल कहते हैं कि जब अनुराधा आठ महीने के गर्भ में थी तब माँ को सांप ने काट लिया था। अपने भाग्य के कारण वो भी बची और माँ को भी बचाया। अनुराधा के पिता सतीश पाल का कहना है कि उनको ये भी नहीं मालूम था कि कलेक्टर क्या होता है। एक क़िस्सा बताते हुए सतीश पाल ने बताया कि सबसे पहली बार उन्होंने कलेक्टर के नाम पर अगर किसी को देखा था तो वो आई. ए. एस सचिन कुर्वे को देखा था। अनुराधा के पिता सतीश पाल कहते हैं हैं कि एक वक़्त था कि जब उनके लिए कलेक्टर शब्द मात्र ही बहुत बड़ा था। मगर आज बहुत सुखद अनुभव होता है जब कोई कहता है कि “वो देखो वो कलेक्टर का पिता है।”
अनुराधा की माँ मिथिलेश कहती हैं कि एक वक़्त था कि जब लोग कहते थे कि क्या करेगी इतना पढ़ाकर “क्या मजिस्ट्रेट बनाएगी?” और जब अनुराधा मजिस्ट्रेट बनी तो मैंने लोगों को कहा लो “बना दिया अनुराधा को मजिस्ट्रेट।” कलेक्टर बनते ही जब अनुराधा अपनी माँ मिथिलेश से मिलने पहुँची तो माँ को गाड़ी में बैठाया और बोली “माँ यही बनाना चाहती थी ना तुम” “ मुझको यही बनाना सपना था ना आपका।” अनुराधा पाल के पिता सतीश पाल और माँ मिथिलेश अपनी आई.ए.एस बेटी अनुराधा पर विश्वास जताते हुए कहते हैं कि हमें पूर्ण विश्वास है कि अनुराधा हमेशा बेगुनाहों और कमज़ोरों का साथ देगी। वो कहते हैं कि उन्होंने अपनी बेटी को नसीहत दी है कि कभी ग़लत का साथ मत देना, अपने निर्णय पर अटल रहना।पढ़ाई को लेकर संदेश देते हुए अनुराधा पाल के माता पिता का कहना है कि अगर जज़्बा और लगन हो तो किसी भी परिस्थिति में पढ़ाई की जा सकती है।अनुराधा पाल फिलहाल पिथौरागढ़ में डीएम के पद पर कार्यरत हैं। उनकी सफलता देश की तमाम ग्रामीण क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाली लड़कियों के लिए प्रेरणा है। वो अपनी सफलता के लिए सबसे ज्यादा मां का योगदान मानती हैं।