Uttarakhand Politics Live: पूर्व CM त्रिवेंद्र रावत बोले- अच्छा विकल्प मिले तो बार-बार नहीं करना पड़ेगा बदलाव

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देहरादून. उत्तराखंड में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन (Leadership Change) हो गया है. तीरथ सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. तीरथ सिंह रावत की मुख्यमंत्री पद से विदाई होते ही तय हो गया है कि राज्य को 21 साल में दसवां सीएम मिलेगा. साल 2000 में उत्तराखंड के साथ ही झारखंड और छत्तीसगढ़ का गठन हुआ था. उत्तराखंड अब मुख्यमंत्री पैदा करने के मामले में झारखंड के रिकॉर्ड के करीब पहुंच रहा है. बीते 21 सालों में झारखंड में 12 मुख्यमंत्री बने हैं. राज्य गठन के बाद भाजपा की दो साल की अंतरिम सरकार में जिस राजनीतिक अस्थिरता का जन्म उत्तराखंड में हुआ था, वो 21 साल बाद भी बदस्तूर जारी है.

अंतरिम सरकार में ही बीजेपी ने नित्यानंद स्वामी के बाद भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया था. इस लिहाज से देखे तो 2 सालों की अंतरिम सरकार में उत्तराखंड में दो सीएम मिले. 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की सरकार बनी थी. कांग्रेस ने सीनियर लीडर नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया था. अब तक के इतिहास में सिर्फ एनडी तिवारी ही ऐसे सीएम रहे हैं, जिन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. लेकिन तिवारी को भी अपने कार्यकाल के दौरान काफी दिक्कतें उठानी पड़ी थीं. तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत ने कई दफा तिवारी के खिलाफ मोर्चा खोला था. ये बात अलग है कि उनकी कोशिशें परवान नहीं चढ़ पाईं.

बीजेपी का कोई सीएम पूरा नहीं कर सका कार्यकाल

दूसरे विधानसभा चुनावों में सूबे की सत्ता में बीजेपी काबिज हुई थी. बीसी खंडूरी को सूबे का मुख्यमंत्री बनाया गया था. लेकिन खंडूरी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. 834 दिनों तक सत्ता संभालने के बाद भाजपा में खंडूरी के खिलाफ बगावत हो गई. आखिरकार रमेश पोखरियाल निशंक को सूबे का 5वां सीएम बनाया गया. निशंक भी शेष बचे कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाए और फिर राज्य की बागडोर बीसी खंडूरी को दी गई. 2012 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी से कांग्रेस ने सत्ता छीन ली थी. कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का जिम्मा विजय बहुगुणा को सौंपा, लेकिन बहुगुणा का कार्यकाल भी राजनीतिक अस्थिरता की भेंट चढ़ गया. 690 दिनों तक बहुगुणा के सीएम रहने के बाद कांग्रेस ने ये जिम्मेदारी हरीश रावत को दे दी. हरीश रावत को भी पार्टी में बगावत का सामना करना पड़ा. नतीजा ये रहा कि राज्य में पहली बार 25 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन भी लगाया गया. 25 दिनों बाद कोर्ट के आदेश पर हरीश रावत की सरकार फिर बहाल हुई.

राज्य को नहीं मिल सकी स्थिर सरकार

2017 के चुनावों में बीजेपी को सूबे में भारी बहुमत मिला था. 57 विधायकों के साथ बनी सरकार से स्थिरता की उम्मीद जगी थी, लेकिन त्रिवेंद्र रावत की विदाई के बाद तीरथ रावत के इस्तीफे से एक बार फिर उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता आ गई है. तीरथ सिंह रावत के नाम सबसे कम समय के लिए उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड भी बन गया है. तीरथ रावत सिर्फ 115 दिन के लिए ही सीएम रह पाए. भले ही तीरथ के इस्तीफे के पीछे संवैधानिक संकट का हवाला दिया जा रहा हो. बावजूद इसके उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता फिर पैदा हो गई है. राजनीतिक मामलों के जानकार डीएस पांगती कहते हैं कि उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता की सबसे बड़ी वजह राजनेताओं की अति महत्वाकांक्षा है. पागंती का कहना है कि उत्तराखंड में कांग्रेस और बीजेपी ही बारी-बारी से सत्ता में आई हैं. इन दोनों दलों की बागडोर दिल्ली के नेताओं के पास है. लगता है कि दोनों दलों के केन्द्रीय नेतृत्व की पकड़ सूबे के नेताओं पर उतनी मजबूत नहीं है कि राज्य को स्थिर सरकार मिल सके.

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