ईडी से क्यों डरते हैं भ्रष्ट नेता और अधिकारी ? पूरी जानकारी

ईडी यानी प्रवर्तन महानिदेशालय की आजकल देश में खूब चर्चा है. ईडी का नाम आते ही भ्रष्टाचार के अर्जित की गई सम्पत्तियों का ब्यौरा और ढेर सारे नोट एक साथ दिखाई देने लगते हैं. ईडी का नाम सुनते ही सबके के पसीने छूट जाते हैं. आखिर ईडी क्या है? जिससे भ्रष्ट नेता और अधिकारी पुलिस से ज्यादा डरते हैं. आइए जानते हैं ईडी कैसे काम करती है, इसके जांच करने का क्या तरीका है और और इसको कितनी शक्तियां प्राप्त हैं?

ईडी को शक्तियां कहां से मिलती हैं ?

अपराध और भ्रष्टाचार के जरिए जो संपत्ति और पैसा अर्जित किया जाता है, उसे सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा तरीका है उसे कहीं दूसरी जगह भेज दिया जाए. ऐसा करने से अपराधी की किसी के प्रति जवाबदेही नहीं होती. देश में इन्हीं अपराधों और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की सख्त जरूरत थी. 2002 में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के जरिए ईडी को लाया गया, लेकिन इस अधिनियम को 2005 में लागू किया गया. इसका उद्देश्य था कि भारत के बाहर या यूं कहें कि स्विस बैंकों में जो पैसे भेजे जा रहे हैं उसको रोकना और इसके साथ ही पैसे को जहां भेजा जा रहा है उसके निशान को पता करना था. हीं प्रवर्तन महानिदेशालय के पास जब कोई मनी लॉन्ड्रिंग का मामला आता है या उसे किसी भ्रष्टाचार का पता चलता है तो पहले वो संबंधित ठिकानों पर रेड मारने से लेकर आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत जुटाती है. यह प्रक्रिया होने के बाद प्रवर्तन महानिदेशालय आपराधी को पूछताछ के लिए समन भेजती है.

बता दें कि स्थानीय पुलिस स्टेशन में धन से संबंधित कोई केस दर्ज किया जाता है, जो एक करोड़ से ज्यादा है तो इसकी जांच करने वाला अधिकारी ईडी को पूरा विवरण भेजता है. इसके अलावा, अगर अपराध सीधा केंद्रीय एजेंसी के संज्ञान में आता है, तो वे एफआईआर या फिर चार्जशीट के लिए अपराधी को बुला सकती है. इसके बाद पता लगाया जाता है कि कहीं कोई लांड्रिंग तो नहीं हुई है.

स्थानीय पुलिस और ईडी की जांच अलग कैसे?

अगर किसी नेशनल बैंक में चोरी हुई हुई है, तो स्थानीय पुलिस स्टेशन पहले जांच करेगा. वहीं अगर चोरी करने वाले ने चुराया गया सारा पैसा बिना खर्च किए अपने घर में रख लिया तो ऐसे में ईडी कोई हस्तक्षेप नहीं करती, क्योंकि पैसे को पहले ही जब्त किया जा चुका होता है. लेकिन, चोरी किए गए पैसे को चार साल बाद प्रॉपर्टी खरीदने, किसी दूसरे को पैसा ट्रांसफर करना या फिर पैसे को विदेशों में भेज देने पर मनी लॉन्ड्रिंग का केस बनता है. इसके बाद ईडी की केस में एंट्री होती है. ईडी चोरी किए गए पैसे की वसूली प्रॉपर्टी अटैच करके करती है.

इसको ऐसे भी समझ सकते हैं, मान लीजिए अगर एक करोड़ रुपए के गहने चोरी हो जाते हैं तो पुलिस अधिकारी चोरी की जांच करेंगे. लेकिन ईडी एक करोड़ के पैसे की वसूली के लिए आरोपियों की संपत्ति कुर्क कर देती है.वहीं केस की छानबीन के बाद प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक ईडी के अधिकारी आरोपी के पास जब पूछताछ करने के लिए पहुंचते हैं तो पहले सबकुछ नॉर्मल दिखता है, मगर जैसे की अधिकारियों के सवालों की बौछार शुरू होती है वैसे ही अपराधी के पसीने छूट जाते हैं. ईडी सवाल दर सवाल, घुमा-फिरा कर सवाल, कई एंगल से सवाल, संतुष्ट न होने पर कई दिनों तक सवाल करती है. इतनी गहन पूछताछ के बाद अपराधी ईडी के सामने सच बोल ही देता है, जिससे एजेंसी को केस को सुलझाने में मदद मिलती है.

ईडी की अन्य भूमिकाएं और काम क्या हैं?

किसी भी मनी लॉन्ड्रिंग केस में जांच शुरू करने के बाद ईडी पीएमएलए की धाराओं के मुताबिक संपत्तियों और पैसे को खोजकर उन्हें सीज कर देती है. इसके आधार पर ईडी के अधिकारी यह तय करते हैं कि अपराधी की गिरफ्तारी होगी या नहीं. वहीं ईडी धारा 50 के तहत शख्स को पूछताछ के लिए बुलाए बिना सीधे तलाशी और जब्ती भी कर सकती है. इसमें यह भी जरूरी नहीं है कि पहले व्यक्ति को तलब किया जाए और फिर तलाशी और जब्ती की जाए. यानी ईडी कैसे भी केस की शुरुआत कर सकती है.

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