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जानकारी के मुताबिक, नई टिहरी जिला मुख्यालय से करीब 120 किलोमीटर की दूरी पर भारत- तिब्बत सीमा पर स्थित है टिहरी जिले का सीमान्त गांव गंगी है. करीब 150 की आबादी वाले इस गांव में आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. लेकिन प्राकृतिक खूबसूरती और दुर्लभ जड़ी- बूटियों का यहां खजाना है. और यहां के लोगों ने आज तक ऐलोपैथिक दवाइयां नहीं खाई है. यहां अतीस, कूट, कुटकी, चिरायता, छतवा, और सिंगपरणी जैसी दुर्लभ जड़ी- बूटियां होती हैं जो बुखार, खांसी, पेट से संबधित बीमारी, सूगर और लीवर से संबधित बीमारियों में काफी फायदेमंद हैं. कोरोना महामारी के दौर में भी यहां के लोगों ने दवाइयां नहीं खाई और कोरोना के लक्षण होने पर इन्ही जड़़ी बूटियों का काड़ा पीकर अपना इलाज खुद किया.
स्वस्थ्य रहना का कारण भी यही जड़ी बूटियां हैं
सीमान्त क्षेत्र गंगी के लोगों की आजीविका का साधन मुख्य रूप से खेती और पशुपालन है. गंगी के लोगों का कहना है कि पीढ़ियों से वो इन्ही जड़ी- बूटियों के सहारे अपना इलाज करते आ रहे हैं. और यहां अभी कई जड़ी- बूटियां ऐसी हैं, बारे में उन्हें भी नहीं पता है. अनदेखी के चलते आज गंगी क्षेत्र उपेक्षा का भी शिकार हो गया है और विकास से पिछड़ता जा रहा है. हैल्थ एक्सपर्ट का भी मानना है कि गंगी क्षेत्र में ऐसी ऐसी दुर्लभ जड़ी- बूटियां हैं जिन्हें कई बीमारियों में यूज किया जा सकता है. और गंगी के लोगों के स्वस्थ्य रहना का कारण भी यही जड़ी बूटियां हैं.
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