भारत में हिंदुओं को भी मिल सकता है अल्पसंख्यक का दर्जा, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिया जवाब

भारत में अभी तक मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, पारसी और बौद्धों समेत कुछ अन्य समुदाय के लोगों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है.केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका में पूछे गए सवालों पर दिए गए जवाब की मानें तो इस देश की राज्य सरकारें हिंदुओं, धार्मिक और भाषाई समुदायों को भी अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती हैं.केंद्र के इस जवाब के लिहाज से देखें तो भारत में हिंदुओं को भी अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है.

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी है कि राज्य सरकारें भी अपनी सीमा में हिंदू सहित धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं. केंद्र सरकार ने यह दलील अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका के जवाब में दी है.इस याचिका में उन्होंने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी है.
अल्पसंख्यक हिंदुओं को नहीं मिलता सरकारी योजनाओं का लाभअधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी याचिका में दलील दी है कि देश के कम से कम 10 राज्यों में हिंदू भी अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यकों की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि हिंदू, यहूदी, बहाई धर्म के अनुयायी इन राज्यों में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं और उन्हें चला सकते हैं.साथ ही, राज्य के भीतर अल्पसंख्यक के रूप में उनकी पहचान से संबंधित मामलों पर राज्य स्तर पर विचार किया जा सकता है.

राज्य सरकारें कर सकती हैं अल्पसंख्यक घोषितअश्विनी कुमार उपाध्याय की दलील पर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि यह (कानून) कहता है कि राज्य सरकार भी राज्य की सीमा में धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित कर सकती हैं.मंत्रालय ने कहा कि उदाहरण के लिए महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की सीमा में ‘यहूदियों’ को अल्पसंख्यक घोषित किया है, जबकि कर्नाटक सरकार ने उर्दू, तेलगू, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमणी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती भाषाओं को अपनी सीमा में अल्पसंख्यक भाषा अधिसूचित किया है.केंद्र ने कहा कि इसलिए राज्य भी अल्पसंख्यक समुदाय अधिसूचित कर सकती हैं.

याचिकाकर्ता का क्या है आरोप ?

याचिकाकर्ता का आरोप है कि यहूदी, बहाई और हिंदू धर्म के अनुयायी जो लद्दाख, मिजोरम, लद्वाद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में वास्तविक अल्पसंख्यक हैं, अपनी पसंद से शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और संचालन नहीं कर सकते, यह गलत है.इस आरोप के जवाब में मंत्रालय ने कहा कि यहूदी, बहाई और हिंदू धर्म के अनुयायी या वे जो राज्य की सीमा में अल्पसंख्यक के तौर पर चिह्नित किए गए हैं, उल्लेखित किए गए राज्यों में क्या अपनी पसंद से शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और संचालन कर सकते हैं, इसपर विचार राज्य स्तर पर किया जा सकता है.

मंत्रालय ने हलफनामे में दिया जवाब

मंत्रालय द्वारा दाखिल हलफनामा में कहा गया कि अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-1992 को संसद ने संविधान के अनुच्छेद-246 के तहत लागू किया है, अल्पसंख्यकों के मामलों पर कानून बनाने का अधिकार केवल राज्यों को है, तो ऐसी स्थिति में संसद इस विषय पर कानून बनाने की उसकी शक्ति से वंचित कर दी जाएगी, जो संविधान के विरोधाभासी होगा.  केंद्र ने कहा कि अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-1992 न तो मनमाना है या न ही अतार्किक है और न ही संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन करता है.मंत्रालय ने उस दावे को भी अस्वीकार कर दिया, जिसमें कहा गया कि धारा-2(एफ) केंद्र को अकूत ताकत देती है.

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