Flash Story
एसएसपी लोकेश्वर सिंह के निर्देशन में पौड़ी पुलिस ने चलाया अतिक्रमण हटाओ अभियान
चारधाम यात्रा के प्रभारी सचिव आर राजेश कुमार ने सम्हाला मोर्चा
बच्‍चे ही नहीं, समर वेकेशन में मांएं भी जरूर सीख लें ये जरूरी काम
ऋषिकेश मे स्ट्रांगमैन बनकर चमका बिलारी का मोहम्मद कैफ बना ओवरऑल चैंपियन, जीता गोल्ड
सावधान : ATM पर अब नए तरीके से हो रही है ठगी
इस गांव को देखने के बाद भूल जाएंगे नैनीताल-मसूरी की सुंदरता 
उत्तराखंड : मसूरी रोड पर खाई में गिरी थार , 2 की मौत 3 लोग गंभीर रूप से घायल
डीएम सोनिका ने ऋषिकेश में बनाए गए चारधाम यात्रा ट्रांजिट कैंप पंहुचकर व्यवस्थाओं का लिया जायज़ा
बाइक रैली:दून की सड़कों पर पर्यावरण बचाने का संदेश

अनोखी है  कुमाऊंनी होली – 1850 से आयोजित हो रही होली पर झूमते थे ब्रिटिश अफसर

उमंग और उल्लास का रंगोत्सव है होली , क्या यूपी क्या पंजाब , क्या राजस्थान क्या देवभूमि के पहाड़ जब होली का उत्सव देश में मनाया जाता है तो देश एक ही रंग में रंगा नज़र आता है।
इन सबसे अलग और अनोखी होती है पहाड़ की बैठकी कुमायूनी होली और उसका रिवाज़ कुमाऊंनी होली शास्त्रीय संगीत से उपजी है। पहाड़ की संस्कृति को लिखने और पढ़ने वाले साहित्यकार बताते है कि ग्वालियर व मथुरा से भी मुस्लिम फनकार यहां आते रहे हैं। अंग्रेजों के जमाने में भी कुमाऊं में होली का गायन होता रहा। 1850 से होली की बैठकें नियमित होने लगीं और 1870 से इसे वार्षिक समारोह के रूप में मनाया जाने लगा।राजा कल्याण चंद्र के समय दरबारी गायकों के भी संकेत मिलते हैं। अनुमान लगाया जाता है कि दरभंगा की होली में अनोखा सामंजस्य है। निदेशक हिमालय शोध संगीत समिति डा. पंकज उप्रेती ने बताया कि कन्नौज व रामपुर की गायकी का प्रभाव भी होली पर पड़ा।

होली गायकी को सोलह मात्राओं में पिरोया। मुगल शासक व कलाकारों को भी होली गायकी की यह शैली रिझा गई और वह गा उठे किसी मस्त के आने की आरजू है। इसी प्रकार की एक रचना जिसमें लखनऊ के बादशाह और कैसरबाग का उल्लेख है। अधिकतर यह राग काफी में गाई जाती है।प्राचीन वर्ण व्यवस्था की एक मान्यता के अनुसार रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली व होली प्रमुख त्योहार बनकर उभरे। पौष के प्रथम रविवार को विष्णुपदी होली के बाद वसंत, शिवरात्रि के अवसर पर क्रमवार गाते हुए होली निकट आते-आते अति श्रृंगारिकता इसके गायन-वादन में सुनाई देती है।

गांवों में होली के साथ-साथ झोड़ा-चांचरी, लोक नृत्य शैली का चयन भी है। कुमाऊं की होली के काव्य स्वरूप को देखने से पता चलता है कि कितनी विस्तृत भावना इन रचनाओं में भरे हैं।इसका संगीत पक्ष भी शास्त्रीय और गहरा है। पहाड़ का प्रत्येक कृषक आशु कवि है। गीत के ताजा बोल गाना और फिर उसे विस्मृत कर देना सामान्य बात थी।

विद्वानों के बारे में पता चलता है कि इनमें सबसे प्रथम पंडित लोकरत्न पंत गुमानी हैं। उनकी रचना जो राग श्याम कल्याण के नाम से अधिकांश सुनाई देती है। मुरली नागिन सों, बंशी नागिन सों, कह विधि फाग रचायो, मोहन मन लीना है। चलिए हम और आप भी पहाड़ की इस कुमायूनी होली के रंग में रंग जाते हैं।

आप सभी को न्यूज़ वायरस टीम की तरफ से होली की हार्दिक शुभकामनयें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top