मो.सलीम सैफी
न्यूज़ वायरस नेटवर्क
देहरादून,10 सितंबर। मुख्यमंत्री धामी का स्पष्ट कथन है कि किसी भी बेगुनाह के साथ धामी-राज में कभी भी,किसी भी रूप में,किसी के भी साथ अन्याय नहीं होगा और पापी बच नही पाएगा यानी मुख्यमंत्री ने साफ़ संकेत दिए है कि किसी भी तहरीर को केस के रूप में रजिस्टर्ड करने से पहले निष्पक्ष जांच पड़ताल गहराई से ज़रूर कर ली जाए ताकि किसी भी बेगुनाह के साथ अन्याय न हो, लेकिन लगता है कि राजधानी देहरादून में आजकल एक ट्रेंड चल पड़ा है किसी भी बेगुनाह शख्स को फर्जी मुकदमों में फंसवाने का, झूंठे केसो में उलझाने का,किसी भी हाई प्रोफाइल केस में चुपके से किसी का भी नाम सरकाने का और ये सब होता है पूर्वनियोजित ढंग से,ये वो लोग होते है जो आपके आसपास के लोग होते है जिनसे किसी न किसी रूप में आपका आर्थिक लेनदेन हुआ होता है या फिर किसी भी लेनदेन की उनको जानकारी होती है या उन गुनहगारों ने कभी न कभी आपके साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई आर्थिक व्यवहार किया हो।
अब हम बताते है कि ये गुनहगार सक्रिय कैसे होते है,इनका सबसे आसान टारगेट होते है वो लोग जो इनको रुपया पैसा उधार देते है,जब तक इनसे पैसा वापस नहीं मांगा जाता तब तक ये गुनहगार बहुत व्यवहारिक और शरीफाना अंदाज़ अपनाते है,जैसे ही उधार देने वाला शख्स या आर्थिक व्यवहार करने वाला शख्स अपना पैसा वापस मांगता है तो ये अपने असली रूप में आ जाते है अर्थात फर्जी पुलिस केस बनवाने का प्रयास करते है, कभी कभी ये ठग अपने नापाक प्रयासों में कामयाब भी हो जाते है तो कभी कभी एसएसपी देहरादून दलीप सिंह कुंवर जैसे काबिल अफसरों की पैनी नज़र इनके नापाक इरादों को वक्त रहते पहचान लेती है और कोई भी बेगुनाह इनका शिकार होने से बच जाता है।
राजधानी देहरादून हो या फिर छोटे छोटे शहर और कस्बे हर जगह ऐसे गुनहगार कुछ कथित पत्रकारों को मोटी आमदनी कराने के नाम पर साथ जोड़े रखने का इरादा भी परवान चढ़ाते है, कही इन्हे कामयाबी मिलती है तो कही मायूसी इनके हाथ आती है,इन कथित पत्रकारों की भूमिका सिर्फ़ माहौल बनाना और कही दबाव की कोशिश करना भी होता है हालकि असली लाभ तो गुनहगारों को ही होना ही प्रतीत होता है,कथित पत्रकार तो छोटे लालच की बुनियाद पर अनजाने में जानबूझकर किसी भी बेगुनाह को फसवानें का गुनाह करने से बाज़ नही आता और वो ये भूल जाता है कि उसकी इस नादानी से किसी भी बेगुनाह शख्स की उम्रभर की इज़्ज़त दाव पर लग जाती है और वो फिर मजलूम से जालिम बनने को मजबूर हो जाता है हालकि सच और गुनाह कभी न कभी सामने आते ही है,कभी छुप नहीं सकते।
ऐसे गुनहगार अपने घर की इज़्ज़त की परवाह किए बिना अनैतिक और असंवैधानिक कृत्य करने से भी बाज़ नही आते,अपनी सम्मानित पत्नी,बहन या किसी अन्य से भी कोई भी इल्ज़ाम किसी भी बेगुनाह को फंसवाने के लिए लगवा देते है।
अगर आप पुलिस के पास आने वाली तहरीरों पर एक अध्यन करेंगे तो चौंक जाएंगे ज्यादातर की गहराई से जांच करने पर कही न कही ऐसे कथित शिकायतकर्ता की शिकायत में आपको झोल ही झोल मिलेंगे और कही न कही आर्थिक हित भी छुपे होंगे। कुल मिलाकर किसी भी पुलिस अधिकारी या जांच अधिकारी को आंख बंद करके किसी भी तहरीर या सूचना को पूर्णता सच मानकर किसी भी बेगुनाह को गुनहगार साबित करने पर आमादा नही होना चाहिए अर्थात वो पाप करने से हर किसी को परहेज़ करना चाहिए जिससे उसकी आत्मा भी परमात्मा के सामने शर्मिंदा न हो।