दीपावली के रौशनी और पटाखों के शोर के बीच एक बार फिर महाराष्ट्र के राज्यपाल और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी की सक्रियता ने एक बार फिर पहाड़ी हलकों में हलचल मच गई है। ये अलग बात है कि इस मामले में पार्टी नेता और मुख्यमंत्री धामी खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन गढ़वाल में पीएम मोदी और कुमायूं में भगत दा की मौजूदगी इशारा कर रही है कि 2022 के रण को जीतने के लिए कुछ तो पक रहा है।
जिस तरह से गुरु की कृपा शिष्य के राजपाट को धार देने में जुट गयी है उसके बाद कोश्यारी समर्थकों के खिले चेहरे इस संभावना पर मुहर लगा रहे हैं। न्यूज़ वायरस के भाजपा सूत्र बताते हैं कि महामहिम कोश्यारी के करीबी पहाड़ी नेताओं की मानें तो वह इसी महीने नवंबर या दिसंबर तक उत्तराखंड में वापसी कर सकते हैं।
समुन्दर किनारे नहीं पहाड़ में धड़कता है कोश्यारी का दिल –
उत्तराखंड में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले का दौर रहा हो या आज धामी राज का युग ….. इस दौरान गवर्नर कोश्यारी का उत्तराखंड प्रेम कभी कम नहीं हुआ। पूर्व सीएम तीरथ को हटाने के बाद जब पुष्कर सिंह धामी को कमान सौंपी गई तो पक्ष हो या विपक्ष सभी की जुबा पर यही सच तैर रहा था कि गुरु भगत सिंह कोश्यारी के आशीर्वाद से शिष्य धामी को कुर्सी मिली है।
धामी सीएम बनने के बाद अपने राजनैतिक गुरू भगत सिंह कोश्यारी का आशीर्वाद लेने दिल्ली भी गए। इसके बाद कोश्यारी को उत्तराखंड भी बुलाया गया। इस बीच गवर्नर कोश्यारी दो बार उत्तराखंड में लंबा समय देकर नब्ज़ टटोलते रहे हैं। यही वो वजहें हैं जो बताती हैं कि एक बार फिर राज्यपाल कोश्यारी की सक्रियता 2022 चुनाव से पहले बेवजह नहीं है।

मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ऊधम सिंह नगर ज़िले की खटीमा सीट से लगातार 2 बार के विधायक हैं। अचानक सत्ता के शीर्ष पर बैठने वाले पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड में सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री हैं जो केवल 45 साल की उम्र में राज्य की बागडोर बड़ी कुशलता और कामयाबी से संभाल कर अपने गुरु भगत दा के नक़्शे कदम पर आगे बढ़ रहे हैं। ये बात जगजाहिर है कि पुष्कर धामी उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के करीबी है।
जब भगत सिंह कोश्यारी मुख्यमंत्री थे तो पुष्कर धामी उनके ओएसडी हुआ करते थे…. ये अलग बात है कि पुष्कर धामी आज के ओहदे से पहले अभी तक कभी भी किसी कैबिनेट मंत्री या राज्यमंत्री के पद पर नहीं रहे हैं। इसके अलावा सरकार चलाने का भी कोई अनुभव उनके पास नहीं था लेकिन इस तरह से चंद दिनों के कार्यकाल में ही पुष्कर धामी ने अपनी धाक जमाई है उसके बाद खुद पार्टी आलाकमान को धामी की पीठ ठोंकनी पड़ी है। आपको यहाँ ये भी याद दिला दें कि धामी कुमाऊं मंडल से आते हैं और राजपूत जाति से ताल्लुक़ रखते हैं।
