पहाड़ में हार की आग में तप रहे हरीश रावत को अपनों के ज़ुबानी तीर ने किया लहूलुहान  !

अगर आप जानना चाहते  है कि उत्तराखंड में कांग्रेस क्यों हारी तो इन दिनों नेताओं के बयां सुन पढ़ लीजिये आपको जवाब मिल जायेगा। विधानसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस में युद्ध चरम पर पहुँच गया है। एक तरफ पार्टी की दुर्गति दूसरी तरफ एक दूसरे पर वार पलटवार ने कांग्रेस नेतृत्व को भी परेशानी में ज़रूर डाल दिया होगा। शीर्ष नेताओं में चल रहे कोल्ड वॉर के बीच पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि यह समय चीजों को गहराई से विश्लेषण का है, यदि चूक इंचार्ज के लेवल पर हुई तो उन्हें सजा मिलनी चाहिए। जिस लेवल पर हुई उनको सजा मिले। लेकिन हम सीधे कह दें कि सबको इस्तीफा देना चाहिए, तो वह ठीक नहीं रहेगा। रावत ने कहा कि अब प्रियंका गांधी जी ने अभूतपूर्व मेहनत की है, पूरी दुनिया साक्षी है। इससे बेहतर तरीके से कोई चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है।

गंभीर आरोप से आहत हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा है। उन्होंने लिखा कि लगातार इस तरह के गंभीर आरोपों से वह बेहद दुखी हैं। पद और पार्टी टिकट बेचने का आरोप अत्यधिक गंभीर है और यदि वह आरोप एक ऐसे व्यक्ति पर लगाया जा रहा हो, जो मुख्यमंत्री रहा है, जो पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष रहा है, जो पार्टी का महासचिव रहा है और कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य है।

हरीश रावत ने कहा कि मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि कांग्रेस पार्टी मुझ पर लगे इस आरोप पर मुझे पार्टी से निष्कासित कर दें। होली बुराईयों के समन का एक उचित उत्सव है, होलिका दहन और हरीश रावत रूपी बुराई का भी इस होलिका में कांग्रेस को दहन कर देना चाहिए।आपको बता दें कि उत्तराखंड में कांग्रेस की करारी हार के बाद सवाल उठने लगे। कांग्रेस के भीतर रावत की राजनीतिक हैसियत पर भी बात होने लगी। रावत की करारी हार से कांग्रेस गहरे सदमे में है। जिस रावत को कांग्रेस अपना मुख्य चेहरा मानते हुए चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था। भाजपा की आंधी में वो इस तरह धराशायी होंगे, किसी ने सोचा भी नहीं था।

हरीश रावत को राज्य की सियासत का सबसे सयाना नेता माना जाता है। लेकिन उनकी हार की वजह उनके फैसले को भी माना जाता है। वर्ष 2014 में धारचूला सीट पर उपचुनाव जीते रावत वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मैदानी सीटों पर शिफ्ट हो गए। हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला राजनीतिक रूप से बड़ी भूल साबित हुआ। इस बार भी रावत सीट के चयन पर अंतिम क्षणों तक उलझे ही रहे। हाईकमान के दबाव के बाद उन्होंने पहले रामनगर सीट को चुनाव और टिकट हासिल भी कर लिया था। लेकिन पार्टी में उपजे विवाद के बाद रावत लालकुआं सीट पर शिफ्ट होने को भी आसानी से राजी हो गए। अभी ये देखना बाकी है कि नयी सरकार बनने के बाद सदन में विपक्षी कांग्रेस किस तरह से एकजुट आगे बढ़ पाती  है। 

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