दिन में ज्यादा सोने से काला मोतियाबिंद का खतरा : रिचर्स

रात में भरपूर नींद न ले पाना, दिन में नींद आना और खर्राटे भरने से आंखों पर बुरा असर पड़ता है। लंबे समय तक यह समस्या होने पर ग्लूकोमा (काला मोतियाबिंद) होने का जोखिम बढ़ जाता है। समय पर इलाज न मिल पाने से दृष्टिहीनता का भी खतरा बढ़ जाता है ग्लूकोमा के कारण आंखों की रोशनी चले जाने के बाद दोबारा नहीं लौटती है। शोधकर्ताओं ने बताया है कि भरपूर नींद न लेने की स्थिति में यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है।

बुजुर्गों विशेषकर पुरुषों धूम्रपान करने वालों में यह आम समस्या है। बीएमसी ओपन जर्नल में प्रकाशित शोध में ब्रिटेन के बायो बैंक अध्ययन में भाग लेने वाले 4 लाख से ज्यादा लोगों के डेटा का आकलन किया गया। इस स्टडी में 40 से 69 आयु वर्ग के लोगों को शामिल किया गया था। अध्ययन में शामिल लोगों से उनकी नींद की आदतों के बारे में जानकारी जमा की गई।

2010 से 2021 तक चले इस अध्ययन के दौरान 8,690 मामलों की पहचान की गई। आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ताओं ने पाया कि स्वस्थ नींद पैटर्न वाले लोगों की तुलना में खर्राटे और दिन की नींद में ग्लूकोमा का जोखिम 11% बढ़ गया। वहीं, अनिद्रा और छोटी या लंबी नींद लेने वालों में यह जोखिम 13% तक बढ़ गया था। अच्छी नींद न होने से निर्णय लेने की क्षमता, स्वभाव, सीखने की क्षमता और याददाश्त पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, 2040 तक दुनिया भर में 11.2 करोड़ लोग ग्लूकोमा से प्रभावित हो सकते है।

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