विशेष रिपोर्ट – आशीष तिवारी उत्तराखंड की विधान सभा के इतिहास पर बात करते हुए आज हम आपको बता रहे हैं राजधानी देहरादून की बेहद महत्वपूर्ण सीट रायपुर के बारे में….. देहरादून जिले की रायपुर सीट साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद वजूद में आई थी । आपको बता दें कि इससे पहले रायपुर डोईवाला विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा थी । इस विधानसभा क्षेत्र तमाम ऐसे बड़े और वीआईपी इलाके शामिल हैं जहाँ बड़ी तादात में लोग मतदान करते हैं। ऐसे ही क्षेत्रों में शामिल हैं नेहरू कालोनी, धर्मपुर, रायपुर, लाडपुर, सहस्रधारा रोड, एमडीडीए कालोनी (डालनवाला व केदारपुरम), अधोईवाला, डिफेंस कालोनी, अजबपुर कलां, अजबपुर खुर्द जैसे कुल 47 क्षेत्र शामिल हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में बड़ी आबादी मलिन बस्तियों में भी निवास करती है। लिहाजा, इसे मिश्रित प्रकृति की सीट कहा जा सकता है। भाजपा और कांग्रेस के लिए यह सीट हमेशा प्रतिष्ठा का विषय रही है।
दोनों दलों के नेताओं में यहां से दावेदारी को लेकर घमासान की स्थिति रहती है।विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद पहली दफा यहां वर्ष 2012 में विधानसभा चुनाव कराए गए थे। तब कांग्रेस के टिकट पर उमेश शर्मा काऊ ने जीत हासिल की थी। भाजपा के त्रिवेंद्र सिंह रावत दूसरे स्थान पर रहे थे। त्रिवेंद्र को उमेश से 474 वोट कम मिले थे। इसके बाद वर्ष 2017 के चुनाव में उमेश शर्मा काऊ इस सीट पर भाजपा के टिकट से लड़े और लगातार दूसरी जीत दर्ज की। माजूदा विधान सभा चुनाव में समीकरण थोड़ा बदले कांग्रेस ने अनुभवी हीरा सिंह बिष्ट को भाजपा का किला गिराने के लिए मैदान में उतारा है।
जातीय समीकरण की बात करें तो रायपुर विधानसभा क्षेत्र में 70 फीसद से अधिक मतदाता पर्वतीय मूल के हैं। इसके अलावा करीब 10 फीसद मुस्लिम, पांच फीसद पंजाबी और पांच फीसद ही अन्य पिछड़ा वर्ग व अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। इस सीट पर पर्वतीय मूल के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इस दफा यहां 1,76,460 मतदाता तय करेंगे कि किस राजनीतिक दल के प्रत्याशी को जनता का प्रतिनिधि बनाना है।