न्यूज़ वायरस के लिए फ़िरोज़ आलम गाँधी की रिपोर्ट
भारत कितना भी हाईटेक क्यों न हो जाये युवा साइबर की बारीकियों को लेकर कितने भी जागरूक क्यों न हो जाएं लेकिन जब बात खाकी , पुलिस और थाने की आती है तो पसीने छूट जाते हैं। हम और आप बारीकियों से अनजान नाहक ही परेशां हो जाते हैं। ऐसे में हम आपको काम की बात बता रहे हैं। दरअसल लोगों को पता नहीं होता है कि FIR कैसे लिखवाना है। इसके लिए थाने जाना जरूरी है या ऑनलाइन भी FIR दर्ज कराई जा सकती है। अगर पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करना चाहिए, पीड़ित के क्या-क्या अधिकार होते हैं…
आज जरूरत की खबर में हमारे कानून के विशेषज्ञ आपको FIR से जुड़े जरूरी सवालों के जवाब दे रहे हैं।
सवाल – FIR क्या होती है?
जवाब- FIR यानी फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट। दण्ड प्रक्रिया संहिता यानी CrPC 1973 के सेक्शन 154 में FIR का जिक्र है। क्राइम रिलेटेड घटना के संबंध में पुलिस के पास कार्रवाई के लिए दर्ज की गई पहली सूचना को प्राथमिकी या फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट यानी FIR कहा जाता है।
सवाल – FIR के बाद क्या होता है?
जवाब- CrPC की धारा 157(1) के मुताबिक, पुलिस मामला दर्ज कर FIR की रिपोर्ट जिले के या संबंधित मजिस्ट्रेट तक 24 घंटे के अंदर भेज देती है।
सवाल – FIR करना क्यों जरूरी है?
जवाब- देश में हर व्यक्ति को शिकायत के तौर पर FIR दर्ज कराने का अधिकार है। अगर कहीं भी संज्ञेय अपराध यानी Cognizable Offence हो रहा है, तो ऐसे में रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद ही पुलिस छानबीन कर सकती है।
सवाल – संज्ञेय अपराध यानी Cognizable Offence किसे कहते हैं?
जवाब- संज्ञेय अपराध का जिक्र क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CrPC 1973) की धारा 2 (C) और 2 (L) में है। धारा 2 (C) कहती है कि ऐसा अपराध, जिसमें पुलिस किसी व्यक्ति को बिना किसी वारंट के अरेस्ट कर सकती है, वह संज्ञेय अपराध यानी Cognizable Offence है।
सवाल –FIR में क्या-क्या लिखा जाता है?
जवाब- FIR दर्ज करवाते समय ये बातें लिखी जाती हैं-FIR लिखते या लिखवाते वक्त उसमें बारीक से बारीक डिटेल होनी चाहिए। जैसे- अपराध के वक्त चांदनी रात थी या अंधेरा था। लैंप पोस्ट वहां आसपास था कि नहीं। अगर था तो उसकी रोशनी कितनी दूर तक की थी।
घटना की तारीख, समय, जगह और आरोपी की पहचान (अगर उसे जानते-पहचानते हैं तब) उसमें होना चाहिए।
इसमें घटना के सही तथ्य और घटना में शामिल व्यक्तियों के नाम और डिटेल शामिल होने चाहिए।
गवाहों (यदि कोई हो) के नाम भी पुलिस को उनकी जांच में मदद करने के लिए दिए जाने चाहिए।
गलत जानकारी न दें, IPC 1860 के सेक्शन 203 के तहत आप पर कार्रवाई हो सकती है।
FIR में कोई भी बयान ऐसा न दें, जिसके बारे में आप खुद ही क्लियर नहीं हैं।
सवाल – पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें?
जवाब- ऐसे में आप सीधे पुलिस सुपरिटेंडेंट (SP) या इससे ऊपर डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (DIG) और इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (IG) से शिकायत कर सकते हैं।
आप इन अधिकारियों को अपनी शिकायत लिखित रूप में ऑफिस जाकर दें। चाहें तो इसे पोस्ट के जरिए भेज सकते हैं। वे अपने स्तर पर से इस मामले की जांच करेंगे या जांच का ऑर्डर भी देंगे।
कई राज्यों में CM helpline नंबर मौजूद है। आप अपने राज्य के CM तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं, तो CM helpline नंबर पर शिकायत करें।
अगर महिला के साथ अपराध हुआ है, तो वो FIR दर्ज न होने पर महिला आयोग को इसकी सूचना दे सकती है।
इन सबसे भी अगर कोई असर नहीं हुआ, तो सीधे कोर्ट में 156(3) के तहत शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।
सवाल 8- क्या FIR दर्ज करने के लिए हमेशा पुलिस स्टेशन जाना जरूरी है?
जवाब- नहीं, FIR दर्ज करने के लिए हमेशा पुलिस स्टेशन जाना जरूरी नहीं है। इसे आप ऑनलाइन भी दर्ज करा सकते हैं।
एक चिट्ठी लिखकर भी दर्ज करा सकते हैं।
मेल और फेसबुक के जरिए भी FIR दर्ज करा सकते हैं।
पुलिस ऐप का इस्तेमाल करके भी FIR दर्ज करा सकते हैं।
पुलिस खुद की सूचना से FIR दर्ज कर सकती है।
कुछ मामलों में पुलिस आपके पास आकर भी रिपोर्ट दर्ज करती है।