उत्तराखंड के 9 जिले खतरनाक, मई के 14 दिनों में पिछले 1 साल से ज्‍यादा कोविड मौतें!

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सांकेतिक तस्वीर.

सांकेतिक तस्वीर.

इस साल 30 अप्रैल तक पिछले करीब 13 महीनों में जितनी मौतें कोरोना संक्रमण के चलते रिकॉर्ड हुईं, उनसे ज़्यादा आधे महीने में होने से स्वास्थ्य सेवाएं, ग्रामीण इलाकों में हालात और सरकारी कोशिशें चर्चा के केंद्र में हैं.

देहरादून. कोरोना संक्रमण उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में किस कदर फैल चुका है, इसकी बानगी इस आंकड़े ​से मिल रही है कि राज्य के नौ पहाड़ी ज़िलों में मई के आधे महीने में ही जितनी जानें कोविड 19 से जा चुकी हैं, वो इस साल 15 मार्च से 30 अप्रैल के बीच हुई मौतों से भी ज्‍यादा हैं. पिछले साल जब उत्तराखंड में कोरोना का पहला केस आया था, तबसे डेटा जुटा रही एक निजी संस्था ने इस विश्लेषण के जरिये चेताया भी है, कारण भी बताए हैं. पहले अगर डेटा ही देख लें तो साफ पता चलता है कि 15 मार्च 2020 को उत्तराखंड में पहला कोरोना केस सामने आया था. तबसे 30 अप्रैल 2021 तक राज्य के नौ पहाड़ी ज़िलों में कोरोना से कुल 312 मौतें का सरकारी आंकड़ा सामने आया. लेकिन चिंताजनक तस्वीर यह है कि इन्हीं ज़िलों में 1 मई से 14 मई के बीच कुल मौतों की संख्या 331 रही. ये भी पढ़ें : प्रेम प्रसंग में घर से भागी मां ने ही आखिर क्यों ली नन्ही-सी बेटी की जान? कितने भीतर तक पहुंचा वायरस?हालात गंभीर इसलिए हो रहे हैं कि एक तो पहाड़ी ज़िले और उस पर भी दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों तक संक्रमण पहुंच चुका है. पौड़ी ज़िले के कुर्खयाल गांव में 141 में से 51 लोग जांच में पॉज़िटिव पाए गए. इस तस्वीर से चिंता की बात तो साफ है ही, यह भी ज़ाहिर है कि पहले ही सीमित स्वास्थ्य सेवाएं कितनी कम पड़ रही हैं.

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उत्तराखंड के नौ पहाड़ी ज़िलों में कोरोना मौतों के आंकड़ों से चिंता बढ़ी.

गांवों तक नहीं पहुंच रहीं दवाएं!
चमोली ज़िले में हालात कितने खतरनाक हैं, उसकी बानगी एरणी गांव के प्रधान मोहन नेगी ने दी. नेगी के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया कि ‘मेरे गांव में 80 फीसदी लोगों को बुखार है लेकिन कोई टेस्ट और इलाज उपलब्ध नहीं है. अफसरों ने वादा किया था, एक टीम आई भी थ जो कुछ सैंपल लेकर गई और कुछ दवाएं थमा गई.’ ये भी पढ़ें : बुखार पीड़िता का कोविड टेस्ट किए बगैर बोतलें चढ़ाता रहा डॉक्टर, युवती की मौत इस पर राज्य सरकार का कहना है कि हर संभव कोशिश की जा रही है. इस बारे में न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट एक निजी फाउंडेशन के हवाले से यह भी कहती है कि हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पहले ही बुरी तरह दबाव झेल रहा है और नाकाफी नज़र आ रहा है. फाउंडेशन के अनूप नौटियाल के हवाले से कहा गया कि समय से ठीक इलाज मिल जाए तो 90 फीसदी से ज़्यादा केस सामान्य ही हैं. “सरकार को हर संभव कोशिश करना चाहिए जैसे फोन पर डॉक्टरी सलाह देने और ग्रामीण या दूरस्थ इलाकों में कोविड किट की होम डिलीवरी आदि कदम उठाने ज़रूरी हैं.”







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