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एक अनोखी शख्सियत , जिसकी मौत पर बेगम ने गहने तक उतार दिए

मुगल सल्तनत में किन्नर तो बहुत हुए लेकिन इतिहास में नाम दर्ज हुआ जावेद का. जावेद को मौके पर दिमाग का इस्तेमाल करना बखूबी आता था. उसने ऐसा ही किया और मुगल इतिहास का सबसे प्रभावशाली किन्नर बना. किन्‍नर जावेद की भर्ती मोहम्‍मद शाह रंगीला के दौर में हुई, लेकिर वो पावरफुल हुआ बादशाह मौत के बाद.

मुगलों के साम्राज्य में किन्नरों के पास भी कई तरह की जिम्मेदारियां होती हैं. जैसे- हरम में शाही परिवार की महिलाओं की देखभाल करना क्योंकि यहां किसी पुरुष को आने की अनुमति नहीं थी. अवध के नवाब रहे सफदरजंग ने अफगान आक्रमणकारी अब्दाली को करारी शिकस्त दी. इस जीत के बाद मुगल बादशाह अहमद शाह ने 29 जून 1748 उसे मुग़ल साम्राज्य का वजीर घोषित किया. समय के साथ सफदरजंग का रुतबा बढ़ने लगा, लेकिन उसे चुनौती देने का काम किया किन्नर जावेद ने.

जावेद को मौके पर दिमाग का इस्तेमाल करना बखूबी आता था. उसने ऐसा ही किया. वजीर घोषित होने के बाद 1750 में सफदरजंग एक युद्ध पठानों से हार गए और दिल्ली वापस आ गए. जंग मेंं 70 हजार घुड़सवार होने के बावजूद उन्हें तगड़ी शिकस्त मिली. जंग के दौरान जबड़े को छूकर एक गोली निकल गई और वो बाल-बाल बचे.जब किन्नर ने अपना रौब दिखाना शुरू किया

शिकस्त के जब वो दिल्ली आए तो जावेद ने उन्हें अपना रौब दिखाना शुरू किया. इतिहासकार माइकल एडवर्ड लिखते हैं कि मुगलों में एक परंपरा थी कि जंग में हारे हुए वजीर को अपने पद से हट जाना चाहिए. जावेद ने सफदरजंग को मुगलों का वही नियम याद दिलाया. सफदरजंग किसी भी कीमत पर वजीर का पद खोना नहीं चाहते थे, इसलिए रिश्वत के तौर पर उन्होंने जावेद को 70 लाख रुपये दिए. यह रकम देने के साथ इस बात को सुनिश्चित किया कि वो यह बात किसी से साझा न करे.

कब और कैसे इतना ताकतवर हो गया जावेद?

निम्न वर्ग में पैदा हुआ जावेद अनपढ़ था, लेकिन मौके का इस्तेमाल करना और जासूसी करने में माहिर था. उसकी इन्हीं खूबियां के कारण मोहम्मद शाह रंगीला ने उसे हरम का सहायक अधीक्षक बनाया, लेकिन उसकी किस्मत पलटी बादशाह की मौत के बाद. उसने तेजी से तरक्की की. जावेद को 6 हजार मनसबदार का मुखिया बना दिया गया. फिर गुप्तचर विभाग का प्रमुख बनाया गया. इतना ही हीं, उसे नवाब बहादुर की उपाधि से भी नवाजा गया, यह सम्मान पाने वाला वो इकलौता इंसान था.

उसकी इस तरक्की के पीछे थीं राजमाता उधमबाई. किताब ‘फर्स्ट टु नवाब्स ऑफ अवध’ के मुताबिक, जावेद के उधमबाई के साथ अंतरंग सम्बंध थे. वो उस पर आंख बंद करके विश्वास करती थीं. वो नियमों को तार-तार करते हुए बादशाह अहमद शाह की मां उधमबाई के साथ दिन-रात शाही हरम में बिताता था. दिल्ली में इस बात की खूब चर्चा होती थी. राजमाता की छूट के करण वह दिनों-दिन गुस्ताख होता गया. लोगों से बदतमीजी करने लगा. जो भी उसे पसंद न आता उसकी जड़ें काटने लगता.हर जगह मनमानी और दखलअंदाजी

जावेद और वजीर की कभी नहीं बनी. जावेद ने सफदरजंग के कई भरोसेमंदों को बड़ी चतुराई से अपने खेमे में शामिल कर लिया था. यहां तक कि वजीर के कई फैसलों में उसने दखलंदाजी और उसे लागू भी कराया. सल्तनत में कई जगहों पर वजीर के आदमी को हटाकर अपने शागिर्द तैनात किए. सफदरजंग को एक बात समझ आ गई थी कि जब तक ये रहेगा तब तक वो सिर्फ नाम का वजीर रहेगा.

हत्या की योजना बनी

सफदरजंग ने उसे हमेशा से हटाने के लिए हत्या की साजिश रची. उसने अपने विश्वासपात्र राजा सूरजमल और जयपुर के राजा माधवसिंह को किसी न किसी बहाने से दिल्ली सेना लेकर आने को कहा. दोनों ही इसके लिए रजी हो गए.दोनों के राज्य में आने पर वो पहले किससे मिलेंगे वजीर से या फिर जावेद से, यह बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ. दोनों ही चाहते कि मेहमान पहले उनसे मिलें. मुगल बादशाह से इसका हल निकाला कि वो दोनों से मुलाकात वजीर के घर पर करेंगे. इस तरह मौके पर वजीर और जावेद दोनों मौजूद थे. तारीख थी 6 सितंबर 1752.

दोनों से मुलाकात के बाद सफदरजंग जावेद को एक कमरे में ले गया. पहले उसके राजकाज से जुड़े मामलों को लेकर बसस की फिर कहा कि मुझे कुछ काम है. यह कहते हुए वो निकल गया. जैसे ही वो निकला कमरे में पहले से छिपे अली बेग ने जावेद के पेट पर हमला कर दिया. फिर तलवार से उसे काट डाला. लाश को यमुना के किनारे पर फेंक दिया.

जब यह बात राजमाता और बादशाह अहमद शाह को पता चली तो दोनों ही गम में डूब गए. दोनों की आंखों में आंसू भर गए. मशहूर इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार ने अपनी क़िताब ‘फॉल ऑफ द मुग़ल एम्पायर’ में लिखा है कि जावेद की मौत से बादशाह और उनकी मां को गहरा आघात पहुंचा. कहा जाता है कि मौत की खबर सुनने के बाद उधमबाई ने विधवा की तरह सभी गहरे उतार दिए और सफेद कपड़े पहन लिए.

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