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धामी सरकार से मदरसा टीचरों की अपील

न्यूज़ वायरस एक्सक्लूसिव

आपको यकीन नहीं होगा लेकिन जनाब ये खबर सच है। काम सबसे पवित्र और महान , लेकिन नतीजा ठन ठन गोपाल … जीरो मेहनताना और लगन सौ फीसदी …. जी हाँ आज बात उस समस्या की करेंगे जो सरकार , विभाग और सिस्टम के लिए रूटीन की है लेकिन इस मुसीबत को झेल रहा है तीन सौ से ज्यादा परिवार , क्या है मामला आपको बताते हैं।

उत्तराखंड को एजुकेशन हब माना जाता है। यहाँ के शिक्षण संस्थान में पढ़ने के लिए देश के तमाम राज्यों से स्टूडेंट्स आते हैं। लेकिन सरकार की मदद और आर्थिक सहयोग से चलने वाले मुस्लिम मदरसों की हालत कहीं से भी दुरुस्त नहीं कही जा सकती है। मदरसा बोर्ड से रजिस्टर्ड और राज्य व् केंद्र सरकार से मिलने वाली तनख्वाह के लिए एसपीक्यूएम योजना से 180 मदरसों के 494 मास्टर अपनी चार साल 2016 से 2020 तक की रुकी 36 करोड़ 23 लाख की सेलरी की वजह से ग़ुरबत झेलने को मज़बूर हैं। एक तरफ मदरसों को स्मार्ट बनाने , डिजिटल क्लास और ड्रेस ,सेलेबस के दावे किये जा रहे हैं दूसरी तरफ इन्ही मदरसों के नाउम्मीद हो रहे गुरूजी तनख्वाह का बस इंतज़ार ही कर रहे हैं लेकिन सिस्टम की बलिहारी फाइलें आज तक मेज़ दर मेज़ हिचकोले ही खा रही है।न्यूज़ वायरस से ख़ास बातचीत में बोर्ड के डिप्टी रजिस्टर यामीन अंसारी बताते हैं कि एसपीक्यूएम योजना में मदरसा टीचरों को 10 फीसद राज्य सरकार और 90 फीसदी केंद्र सरकार मिलकर तनख्वाह देती है लेकिन बीते चार साल से इन टीचरों को न तनख्वाह मिल पाई है और न ही उम्मीद … बोर्ड रजिस्टर हांलाकि ये ज़रूर बताते हैं कि मौजूदा वित्तीय साल में इन 494 टीचरों का बीते 6 महीने की तनख्वाह 3 करोड़ 55 लाख ज़रूर जारी हो या है। लेकिन लाख भागदौड़ , मीटिंग और अनुरोध के बाद भी चार साल से रुकी 36 करोड़ 23 लाख की सेलरी नहीं जारी हो पायी है।जिन टीचरों की तनख्वाह पेंडिंग है उनके बारे में बताते हुए बोर्ड रजिस्टर भावुक होकर बताते हैं कि कि उनके परिवार की हालत बयां करना मुश्किल है। उनका गुज़ारा कैसे हो रहा है ये सिर्फ महसूस किया जा सकता है। फिर भी ये मदरसा टीचर्स अपना फ़र्ज़ अंजाम दे रहे हैं। ऐसे में अल्पसंख्यकों की राजनीति करने वाले नेताओं और सरकार को सोचना चाहिए कि जिन मदरसा पॉलिटिक्स पर वो अपनी सियासी रोटियां पकाते हैं उन मास्टरों के घरों में रोटियां कैसे पक रही होंगी ? उत्तराखंड की माजूदा भाजपा की धामी सरकार , अल्पसंख्यक मंत्री चन्दन राम दास और अल्पसंख्यकों के नेता बंनने की कोशिश कर रहे वक़्फ़ बोर्ड अध्यक्ष शादाब शम्स जैसे लीडरों को संजीदगी से ऐसे मसलों को हल करना चाहिए जिससे शिक्षा और विद्यार्थी के बीच शिल्पकार की भूमिका निभा रहे इन मदरसा टीचरों की आँखे नाउम्मीदी और बेबसी में नम न हों।

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