अब कौन बनेगा विपक्ष का नेता ?  कांग्रेस में दावेदारी शुरू 

उत्तराखंड में भले ही कांग्रेस सरकार ना बना पाई हो , भले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तक हरीश रावत ना पहुंच पाए , और भले ही प्रीतम सिंह किंगमेकर न साबित हो पाए हो , लेकिन विपक्ष की कुर्सी पर अब कांग्रेसी दिग्गजों की नजर टिक गई है। जाने क्या वजह है कि उत्तराखंड में हार के बाद भी कांग्रेस के अंदर की गुटबाजी और आपसी खींचतान का कोई अंत होता नजर नहीं आ रहा है। यानी राजनीतिक चाणक्य जो कहते हैं वह अक्षरशः सत्य वचन साबित हो रहा है, कि पहाड़ में कांग्रेस को कांग्रेस ही हमेशा हराती है ।
मतलब कांग्रेस के नेता ही कांग्रेस के साथी नेता के राजनैतिक दुश्मन हैं। अभी हार के गम से कांग्रेस बाहर भी नहीं निकली थी कि नेता विपक्ष के नाम पर अब दावेदारों की कतार सामने नजर आने लगी है। प्रीतम खेमा जहां इस कुर्सी पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाना चाहता है तो वही हरीश रावत जी अब कोई मुरव्वत करने के मूड में नहीं है।

उत्तराखंड में गठित होने जा रही पांचवीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तय करने की राह भी कांग्रेस के लिए आसान नहीं रहने वाली है। निवर्तमान नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह का इस पद पर दावा स्वाभाविक रूप से मजबूत है, लेकिन हार के बाद पार्टी में मचे घमासान के बीच इस पद के लिए भी नए दावेदार सामने आने लगे हैं।  इसे प्रीतम सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के गुटों में बढ़ती खींचतान के परिणाम के रूप में देखा जा रहा है। रावत के खास समर्थकों में शुमार धारचूला से नवनिर्वाचित विधायक हरीश धामी ने इस पद पर अपनी दावेदारी ठोक दी है।

कैबिनेट मंत्री रह चुके अनुभवी नेता हैं प्रीतम 

नेता प्रतिपक्ष का पद कांग्रेस को ही मिलना है। इस पद पर निवर्तमान नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह पार्टी के भीतर सबसे मजबूत दावेदार हैं। प्रीतम छठी बार चकराता विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए हैं। राज्य बनने के बाद से अब तक एक भी चुनाव नहीं हारे प्रीतम सिंह पिछली दोनों कांग्रेस सरकारों में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं।

हरीश रावत और प्रीतम सिंह का 

कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता यानी नेता प्रतिपक्ष पद पर प्रीतम के स्वाभाविक दावे को पार्टी के भीतर ही चुनौती भी मिल रही है। दरअसल प्रीतम सिंह कांग्रेस की हार के लिए टिकटों के वितरण और कटौती पर सवाल खड़े कर चुके हैं। उन्होंने पांच वर्ष तक विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय व्यक्ति को ही वहां टिकट दिए जाने की बात कही, साथ में हार को लेकर होने वाले मंथन पर इन बिंदुओं पर खुलकर चर्चा के संकेत भी दिए।

 ऐसे में सबसे पहले सोनिया गांधी ने जिस तरह से गणेश गोदियाल से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी वापस ले ली है। तो उम्मीद की जानी चाहिए कि अब जो भी नया प्रदेश अध्यक्ष बनेगा उसके लिए कांटों भरा ताज ही साबित होने वाला है। लेकिन यह ताज किसके सिर सजेगा यह कोई नहीं जानता है।

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