आज हम एक ऐसी खबर बता रहे हैं जो आपको हैरान भी करेगी और सुकून भी देगी। ये कहानी है प्रतिमा धीरे के साहस और सोच की जिन्होंने कोरोना के दूसरी लहर के दौरान अपने पति को खो दिया था. पति को खोने के बाद प्रचिता ने शायद ही सोचा होगा कि उसे एक बार फिर कोई ऐसा मिलेगा जो न सिर्फ उसके साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहे बल्कि उसके बच्चे को भी अपना मानेगा.
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह व्हाट्सएप ग्रुप एक एनजीओ, ‘कोरोना एकल महिला पुनर्वसन समिति’ द्वारा बनाया गया था. इस ग्रुप में खास तौर पर वो महिलाएं हैं जिन्होंने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अपने पति को खो दिया था. शुरुआत में ये ग्रुप महिलाओं की मदद के लिए खोला गया था बाद में इसमें पुरुष भी जुड़ने लगे. वर्तमान में इस व्हाट्सअप ग्रुप में विधुर, तलाकशुदा और कुंवारे सहित लगभग 150 से ज्यादा पुरुष शामिल हैं.
महाराष्ट्र के अकोला जिले में रहने वाली प्रचिता ने साल 2022 के अक्टूबर महीने में सचिन धीसे से शादी की थी. इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए प्रचिता अपनी पुरानी जिंदगी के बारे में याद करते हुए कहती है, “मेरे पति की साल 2021 में कोरोना की दूसरी लहर में मौत हो गई थी.जिसके बाद, मेरी सास ने मुझे उस सदमे से बाहर निकलने के लिए दोबारा शादी करने को कहा. उस वक्त मैं सिर्फ 35 साल की थी. मेरी सास ने ही मेरी शादी का सारा इंतजाम किया था लेकिन शादी में शामिल होने से इनकार कर दिया. प्रचिता कहती है कि उनकी सास ने कहा था कि वह मुझे अपने बेटे के अलावा किसी और से शादी करते हुए नहीं देख सकतीं.”
कैसे जुड़ते हैं ग्रुप में लोग
कुटे ने रिपोर्ट में कहा, ‘दुर्भाग्यवश हमारे समाज में महिलाओं का पुनर्विवाह करना बहुत सामान्य नहीं है. कई परिवार ऐसा करने की सहमति नहीं देते हैं. हम इस व्हाट्सअप ग्रुप के जरिए केवल ऐसे लोगों को एक दूसरे से जुड़ने का मौका देते हैं. आगे क्या करना है इसका फैसले उन्हें ही लेना होता है. हमारे इस ग्रुप में वर्तमान लगभग 50 महिलाएं हैं. ये महिलाएं भी ग्रुप में जुड़े पुरुषों से बात करने में कतराती हैं. उन्हें कोई फैसला या किसी के जाल में फंसने का डर होता है.”
व्हाटसअप ग्रुप में जुड़ने के नियम क्या हैं
इस व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़ने के पहले कदम के रूप में, पुरुषों और महिलाओं को ऑनलाइन प्रश्नावली भरनी होती है, जिसमें उम्र, आय, संतान की जानकारी, पेशे और वर्तमान वैवाहिक स्थिति जैसे सवालों के जवाब देने होते हैं. उसके बाद इन प्रश्नावली की समीक्षा की जाती है और एनजीओ के कर्मचारी सत्यता की पुष्टि के लिए आवेदकों को बुलाते हैं, उनमें से अधिकांश की उम्र 25 से 40 साल के बीच होती है. अगर वे इस जांच में पास हो जाते हैं तो उन्हें व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ दिया जाता है. ग्रुप में जुड़ने के बाद उनका विवरण एक रिज्यूमे और एक पूरी लंबाई वाली तस्वीर के साथ साझा किया जाता है.