देवभूमि उत्तराखण्ड के पौड़ी जिले में थलीसैण ब्लॉक के पैठाणी गांव में एक ऐसा स्थान है जहां देवता ही नहीं बल्कि दानव की भी पूजा की जाती है। सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच हैं। यह देश का एकलौता राहु मंदिर है। इस मंदिर में राहु की पूजा भगवान शिव के साथ होती है। हिमालय की गोद में बसे उत्तराखण्ड के पौड़ी में स्थित थलीसैण ब्लॉक के गांव पैठाणी का धार्मिक महत्व थोड़ा भिन्न है, क्योंकि यहां उन्हें भी आदर दिया जाता है जिन्हें स्वयं देवता भी ठुकरा देते हैं।
उत्तराखंड में है इकलौता राहु मंदिर , होती है पूजा
यहां देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से जिस दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया था, उसकी मंदिर बनाकर यहां पूजा की जाती है। थलीसैण ब्लॉक की कंडारस्यूं पट्टी के पैठाणी गांव में स्योलीगाड व नावालिका नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर ऐसा ही है। यह सुनने में भले थोड़ा अजीब जरूर है, लेकिन कहते हैं कि जनआस्था और विश्वास में कुछ भी नामुमकिन नहीं है। यही कारण है कि जहां राहु की दृष्टि पड़ने से भी लोग बचते हैं वहीं पैठाणी के इस राहु मंदिर में सदियों से राहु की पूजा होती आ रही है। वह भी भगवान शिव के साथ।
कहते हैं कि जब शंकराचार्य दक्षिण से हिमालय की यात्रा पर आए तो उन्हें पौड़ी के पैठाणी गांव के इस क्षेत्र में राहु के प्रभाव का आभास हुआ। इसके बाद उन्होंने पैठाणी में राहु के मंदिर का निर्माण शुरू किया।वहीं, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया हैं। उत्तराखण्ड गढ़वाल मंडल के पर्वतीय अंचल में स्थित यह मंदिर बेहद भव्य, अद्भुत एवं खूबसूरत है, जिसके दीदार को देश-दुनिया से पर्यटक एवं श्रद्धालु पैठाणी गांव पहुंचते हैं।
सुदर्शन से कटने के बाद यहीं पर गिरा था राहु का सिर
सागर मंथन के दौरान स्वरभानु नामक राक्षस भगवान विष्णु स्वरूप की चाल को समझ गया था। इस पर स्वरभानु ने मंथन से निकले अमृत को देवताओं की पंगत पर बैठकर छका था। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया था, जिससे कि वह अमर न हो जाए, लेकिन अमृत छक चुका स्वरभानु तो अमर हो गया था। जिसका निचला हिस्सा केतु बना तो धड़ से ऊपर सिर वाला हिस्सा राहु कहलाया। कहते हैं राहु का सिर सुदर्शन से कटने के बाद देवभूमि उत्तराखण्ड के पैठाणी नामक गांव पर गिरा।
इस मंदिर में भगवान शिव के साथ राहु की धड़विहीन मूर्ति स्थापित है। मंदिर की दीवारों के पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी की गई है, जिनमें राहु के कटे हुए सिर व सुदर्शन चक्र उत्कीर्ण हैं। इसी वजह से इसे राहु मंदिर नाम दिया गया। कहा जाता है कि यहां पर विधि से पूजा करने पर राहु और केतु के साथ शनि के दोष से भी मुक्ति मिलती है। वहीं, धार्मिक आस्था के अनुसार राहु द्वारा स्थापित शिवलिंग पर जलाभिषेक कर लिंग की पूजा करने से राहु प्रसन्न हो जाते है। राहु की खूबी है कि अगर उनकी सकारात्मक दृष्टि किसी पर बन जाये तो वो फर्श से अर्श तक पहुंच सकता है।
मूंग की खिचड़ी का लगता है भोग
मान्यता है कि कुंडली में राहु दोष होने से इंसान काफी परेशान रहता है और उसके कार्य जल्द सफल नहीं होता। ग्रह दोष निवारण में विश्वास रखने वाले लोग बड़ी संख्या में राहु की पूजा के लिए यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने से राहु दोष से हमेशा के लिए मुक्ति मिलती है। खास बात यह कि राहु को यहां मूंग की खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। भंडारे में श्रद्धालु भी मूंग की खिचड़ी को ही प्रसाद रूप में ग्रहण करते है।