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‘जात्रा’ से उत्तराखंडी विरासत और संस्कृति को सहेजने की कोशिश

सरवर कमाल- उत्तराखंड अपनी लोक कला की दृष्टि से समृद्ध प्रदेश है जहाँ इसकी विरासत और संस्कृति बाद्य यन्त्रों नगाड़ा, ढोल, दमुआ, रणसिंग, भेरी और हुड़का, बीन और यहाँ के लोक गीतों न्योली, जोड़, झोड़ा, छपेली, बैर व फाग में अपनी छाप छोड़ती है, उत्तराखंड की मिट्टी में ये संस्कृति रची-बसी हुई है जिसको पीढ़ी दर  पीढ़ी संजो कर रखने की ज़िम्मेदारी हर प्रदेशवासी की है. इसी महान विरासत और संस्कृति को रिमिक्स, पॉप, हिप-हॉप के इस दौर में बचाने, जागरूक करने,  प्रोत्साहित करने के लिए ग्राफ़िक ऐरा हिल्स विश्वविद्यालय मे जनसंचार विभाग की तरफ़ से एक सेमीनार का आयोजन किया गया जिसको उत्तराखंडी लोक शब्द ‘जात्रा’ नाम दिया गया कार्यक्रम में कई जाने-माने लोक कला से जुड़े लोगों ने भाग लिया और अपने विचार रखे.

कार्यक्रम के पहले चरण में सामाजिक कार्यकर्त्ता अनूप नौटियाल ने नै पीढ़ी के लिए इस भूलती विरासत पर अपने विचार रखे और भू कानून पर बात की आये हुए एक लोक वक्ता ने कहा कि उत्तराखंड के साथ वो इन्साफ नहीं हो पाया है जो होना चाहिए था, हम पहाड़ से मैदानी क्षेत्रों में आकर संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं. खंडवार से अनवार तक कांसेप्ट के माध्यम से पहाड़ में ऐसे सुन्दर घरों का निर्माण किया जाए जिसमे लोक संस्कृति की झलक दिखती हो उस से रोज़गार के साथ संस्कृति संरक्षित करने में मदद मिलेगी। साथ ही धार्मिक पर्यटन के नाम पर मॉस टूरिज्म को बढ़ावा न दिया जाए, पहाड़ों में कूड़ा फैलाने की नासूर बनती समस्या का भी समाधान करना होगा इसके अलावा किसी भी क्षेत्र में सबको समान मौक़े प्रदान किये जाएँ।

कार्यक्रम में प्रख्यात लोक गायिका डॉ. प्रीतम बर्दवान ने जागर गीत सुना कर लोक संस्कृति की खुशबू बिखेरी साथ ही पद्मश्री डॉ. माधुरी बर्थवाल और डॉ. बसंती बिष्ट ने भी लोक गीत गाकर और लोक संस्कृति पर व्याख्यान देकर उत्तराखंड की विरासत को समझने की कोशिश की.

कार्यक्रम की अध्यक्षता मॉस कम्युनिकेशन विभाग की हेड ताहा सिद्दीक़ी ने की और कार्यक्रम में उपस्तिथ अन्य लोगों में रजिस्ट्रार अरविन्द धार, लाटी आर्ट की प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट कंचन जादली, फोक संगीत बैंड पांडवास, संगीतज्ञ उप्रेती सिस्टर, वैज्ञानिक डॉ. गजेंद्र सिंह भी उपस्तिथ रहे। 

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