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वक़्फ़ बोर्ड और मदरसा बोर्ड में किसके मदरसे स्मार्ट – मुक़ाबला शुरू 

मदरसों पर सियासत तो आपने सुनी और पढ़ी होगी लेकिन विभागों में आगे बढ़ने की होड़ की सियासत हम आपको बता रहे हैं। हालांकि उत्तराखंड के मदरसे भी तमाम मुश्किलों और समस्याओं से जूझ रहे हैं…  इनकी फेहरिस्त लंबी है , लेकिन आज बात समस्याओं की नहीं करेंगे आज बात करेंगे दो अहम विभागों की , जो अपने अपने दावों के साथ इन बदहाल मदरसों को स्मार्ट बनाने की प्रतियोगिता में अब एक दूसरे के सामने आकर खड़े हो गए हैं।  एक विभाग है उत्तराखंड वक़्फ़ बोर्ड और दूसरा है उत्तराखंड मदरसा बोर्ड ,  जी हां हम आपको इन दोनों विभागों के कम्पटीशन की खबर बताने जा रहे हैं , जिसकी खबर शायद अभी उत्तराखंड सरकार और खुद मुख्यमंत्री धामी को भी नहीं होगी तो चलिए आपको खबर बताते हैं।उत्तराखंड में 419 मदरसे हैं बोर्ड में रजिस्टर्ड 

लंबे समय से कांग्रेस के पास उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का जिम्मा था।  लेकिन बीते दिनों धामी सरकार में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स को बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया। उसके बाद शुरू हुई ताबड़तोड़ बयान बाजी जिसमें वक्फ बोर्ड की तरफ से तमाम बड़े-बड़े दावे और वादे किए जा रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा दावा मदरसों को स्मार्ट बनाने को लेकर है। जिसमें बोर्ड के चेयरमैन शादाब शम्स  ने कहा कि मदरसों को अब स्कूलों की तर्ज पर चलाया जाएगा। जहां स्मार्ट क्लासेज होंगी और वहां हिंदू और मुस्लिम दोनों तबके के बच्चे कॉन्वेंट की तर्ज पर इंग्लिश मीडियम पैटर्न पर पढ़ाई करेंगे।
वक़्फ़ बोर्ड 5 मदरसों को बनाएगा मॉडल मदरसा

सुनने में यह बातें जितनी अच्छी लगती हैं दरअसल हकीकत में इन्हें जमीन पर साकार करना उतना ही मुश्किल काम है। यह खुद अल्पसंख्यक विभाग भी जानता है , क्योंकि मदरसों की ड्रॉपआउट संख्या ही हकीकत बयां कर देता है। यहां तक तो बात ठीक थी लेकिन जब हमने उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के डिप्टी रजिस्ट्रार अब्दुल यामीन से उनके रजिस्टर्ड मदरसों की सूरते हाल पूछी तो उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में मदरसे पहले से ही स्मार्ट है और उन्हें सुविधाएं भी दी जा रही है।  लेकिन अगर वक़्फ़ बोर्ड और उसके चेयरमैन अपने मदरसों को मॉडल मदरसा बनाने की बात कह रहे हैं तो मदरसा बोर्ड भी इस तेरा मेरा के मदरसों की चुनौती को स्वीकार करेगा। उनके बयान को एक प्रतिस्पर्धा के तौर पर मानते हुए बोर्ड  वक़्फ़ के मदरसों से अपने मदरसों को बेहतर बनाएगा। यानि अब मदरसा बोर्ड और वक़्फ़ बोर्ड अपने-अपने मदरसों को बेहतर बनाने के लिए एक दूसरे से मुकाबला करेंगे।

लेकिन यहां पर आपको यह जानना भी जरूरी है कि उत्तराखंड में ही नहीं तमाम राज्यों में मदरसों की हालत किसी से छिपी नहीं है।  जहां इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर खानापूर्ति की जाती है। बजट की रकम बोर्ड के ज़िम्मेदारों और मदरसा संचालकों की जेब में पहुँच जाती है और खाली रह जाती है मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों की उम्मीदें। यही नहीं मदरसों में पढ़ाने वाले टीचर बेहद कम और कभी-कभी ही मिलने वाली तनख्वाह पर पढ़ाने का फर्ज निभा रहे हैं।  मिड डे मील ड्रेस , किताबें , कंप्यूटर और लाइब्रेरी के नाम पर सरकारी योजनाओं और फाइलों से पैसा तो खूब निकलता है लेकिन मदरसों तक नहीं पहुंच पाता क्योंकि रास्ते में ही उसका हिसाब किताब सेट हो जाता है।

ऐसे में सरकार में प्रभावशाली दमखम रखने वाले वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन शादाब शम्स का मदरसों की जाँच , स्मार्ट मदरसा बनाने का बयान थोड़ा जल्दबाजी और अव्यवहारिक लगता है। क्योंकि मुस्लिम समुदाय से जुड़े एजुकेशनिस्ट और सोशल एक्टिविस्टसे जब हमने बात की तो उनका कहना हैं कि कौम का भला करने के लिए जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं को सबसे पहले बुनियादी समस्याओं का हल ढूंढना चाहिए ना कि बड़े-बड़े बयान देकर अपनी वाहवाही करानी चाहिए। क्योंकि अगर मदरसों का भला होगा , वहां तरक्की होगी  , बच्चों को मूलभूत सुविधाएं मिलेंगी तो अफसर हो या नेता जनता उन्हें अपने सर आंखों पर खुद ब खुद बिठाएगी। लेकिन जिस तरह से बीते 22 सालों में उत्तराखंड मदरसा बोर्ड और वक़्फ़  बोर्ड के अंदर भ्रष्टाचार की जड़ों ने बरगद की तरह अपनी जड़े जमा ली है उसकी छांव में तरक्की के फूल खिलेंगे ऐसा बहुत मुश्किल लगता है। नेताओं के दावे और अफसरों के इरादे तभी कामयाब होंगे जब नीयत साफ़ और नजरिया कौम की भलाई होगा।

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