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टाइगर सफारी को प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट किसने बताया ? सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी ने माँगा जवाब

उत्तराखंड का वन महकमा सुर्ख़ियों में है। आग जंगलों में सुलग रही है लेकिन इसकी धधक देहरादून से दिल्ली तक महसूस की जा रही है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जो रुख सीईसी ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बफर जोन पाखरो में टाइगर सफारी के मामले में अपनाया है वो किसी तपिश से कम नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी (सीईसी) के साथ दिल्ली में हुई बैठक में उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारियों से टाइगर सफारी के लिए वित्तीय व प्रशासनिक स्वीकृति के साथ ही कई बिंदुओं पर जानकारी साझा की गयी है।

कमेटी ने कार्बेट टाइगर रिजर्व के रेंज से लेकर निदेशक स्तर तक के अधिकारियों टू-डायरी भी मांगी है। साथ ही यह भी पूछा कि इस टाइगर सफारी को प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट किसने बताया। यही नहीं, बाघों के वासस्थल में इस तरह की अनुमति देने के औचित्य पर प्रश्नचिह्न लगाया है। पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में पाखरो में टाइगर सफारी के लिए 106 हेक्टेयर वन भूमि गैर वानिकी कार्यों को ली गई। वर्ष 2019-20 में कार्य शुरू हुआ, जिस पर लगभग चार करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।

इस बीच टाइगर सफारी के लिए बड़ी संख्या में पेड़ों के कटान और अवैध निर्माण की बात सामने आने पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की टीम ने स्थलीय निरीक्षण में शिकायतों को सही पाया। विभागीय जांच में भी बात सामने आई इस क्षेत्र में हुए निर्माण कार्यों को वित्तीय व प्रशासनिक स्वीकृति नहीं ली गई। इस मामले में शासन ने हाल में दो आइएफएस को निलंबित कर दिया था, जबकि कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक को वन मुख्यालय से संबद्ध किया।

शुक्रवार को सीईसी ने दिल्ली में बैठक में राज्य के प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डा पराग मधुकर धकाते समेत अन्य अधिकारी शामिल हुए। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डा धकाते जानकारी देते हुए बताया है कि कमेटी ने टाइगर सफारी की स्वीकृति, वन भूमि हस्तांतरण, बजट समेत तमाम बिंदुओं पर जानकारी ली। साथ ही सफारी के लिए बाघ पकडऩे को पांच करोड़ की राशि रखने को अनुचित बताया।

कमेटी ने पाखरो क्षेत्र के रेंज अधिकारी, डीएफओ, एसडीओ व निदेशक स्तर तक की टू-डायरी भी मांगी है। यह वह डायरी होती है, जिसमें प्रत्येक अधिकारी हर माह अपनी निरीक्षण आख्या समेत कार्यों का ब्योरा मुख्यालय को देता है।

वन विभाग के सूत्रों के मुताबिक कमेटी ने यह भी पूछा कि पेड़ कटान व अवैध निर्माण के मामले में देरी क्यों हुई और इसके लिए जिम्मेदारों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई है। इस बारे में कमेटी को पूरा ब्योरा दिया गया।

इसके अलावा कमेटी को यह जानकारी दी गई कि सफारी के प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट होने जैसी कोई बात नहीं है औन न इस बारे में कभी किसी स्तर पर कोई संवाद हुआ। कमेटी ने बाघ के वासस्थल वाले क्षेत्रों में टाइगर सफारी की अनुमति के मामले में एनटीसीए व वन भूमि हस्तांतरण प्रभाग को अपनी गाइडलाइन को गंभीरता से लेने को कहा। अब देखना होगा कि प्रदेश में इस सबसे ज्वलत और चर्चित मामले में आगे और कौन से नए मोड़ आएंगे और जंगल की जाँच की आंच कहाँ तक जाएगी।

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