पहाड़ के खांटी सियासतदान और दिल्ली देहरादून के बीच उत्तराखंड की कांग्रेस सियासत के धुरी रहे हरदा का पुत्र मोह कहें या बड़ा राजनैतिक दांव अब वो उनकी ही प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। क्योंकि तमाम विरोध के बीच कांग्रेस के सीनियर नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत ने अपने बेटे वीरेंद्र रावत को हरिद्वार सीट पर उतारकर बड़ा दांव खेल दिया है। हरीश रावत का ये निर्णय काफी चौंकाने वाला है। माना जा रहा हैकि हरीश रावत ने हरिद्वार से खुद न लड़कर एक तरह से राजनीतिक संन्यास ले लिया है।
हरीश रावत का सियासी सफर उत्तराखंड से लेकर दिल्ली हाईकमान तक अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले हरीश रावत का सियासी सफर बहुत बड़ा रहा है। वर्तमान समय में उत्तराखंड में हरीश रावत कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा माना जाता है। हरीश रावत केंद्र में मंत्री रहने के साथ ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। हरीश रावत का जन्म 27 अप्रैल 1948 को अल्मोड़ा के मोहनरी गांव में हुआ था। हरीश रावत ने अपनी राजनीति की शुरुआत ब्लॉक स्तर से की। इसके बाद हरीश रावत युवा कांग्रेस के साथ जुड़ गए।
1980 में बड़ा उलटफेर
1980 में पहली बार अल्मोड़ा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के बड़े नेता मुरली मनोहर जोशी को हराकर वे संसद पहुंचे। हरीश रावत को केंद्र में श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री बनाया गया। इसके बाद 1984 में उन्होंने और भी बड़े अंतर से मुरली मनोहर जोशी को शिकस्त दी। 1989 के लोकसभा चुनाव में भी हरीश रावत ने जीत दर्ज की और तीसरी बार लोकसभा पहुंचे। 1990 में हरीश रावत संचार मंत्री बने।
उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष
2001 में उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। 2002 में वो राज्यसभा के लिए चुने गए। 2009 में हरिद्वार सीट से चुनाव जीतकर वे केंद्र में श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री बनाया गए। साल 2011 में उन्हें राज्य मंत्री, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण इंडस्ट्री के साथ संसदीय कार्य मंत्री का कार्यभार भी मिला। 30 अक्टूबर 2012 से 31 जनवरी 2014 तक वे जल संसाधन मंत्री बने।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली
इसके बाद हरीश रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। 2014 के लोकसभा चुनाव में हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत कोलड़ाया गया। लेकिन वे भी चुनाव हार गए। 2017 में हरीश रावत ने विधानसभा का चुनाव दो सीटों से लड़ा, हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा लेकिन हरीश रावत दोनों जगह से चुनाव हारे। इसके बाद से माना जा रहा था कि अंतिम पारी के तौर पर हरदा हरिद्वार लोकसभा चुनाव लड़कर अपना सफर जीत से खत्म करना चाहेंगे लेकिन हुआ इसके उलट ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि खुद को कृष्ण बताने वाले रावत क्या त्रिवेंद्र के सामने वीरेंद्र को जीत का ताज पहना पाएंगे ?