Flash Story
DBS:फेस्ट में दून कालेजों के छात्रों का संगम,समापन सत्र में पहुंचे मंत्री सुबोध उनियाल
देहरादून :  मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल लिवर रोगों  को दूर करने में सबसे आगे 
जेल में बंद कैदियों से मिलने के लिए क्या हैं नियम
क्या आप जानते हैं किसने की थी अमरनाथ गुफा की खोज ?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भारतीय वन सेवा के 2022 बैच के प्रशिक्षु अधिकारियों को दी बधाई
आग में फंसे लोगों के लिये देवदूत बनी दून पुलिस
आगर आपको चाहिए बाइक और स्कूटर पर AC जैसी हवा तो पड़ ले यह खबर
रुद्रपुर : पार्ट टाइम जॉब के नाम पर युवती से एक लाख से ज्यादा की ठगी
देहरादून : दिपेश सिंह कैड़ा ने UPSC के लिए छोड़ दी थी नौकरी, तीसरे प्रयास में पूरा हुआ सपना

विरासत : मुरादें पूरी करता है मसूरी का ये पुराना कुआँ

देहरादून से आसिफ की रिपोर्ट –

देहरादून 10 सितम्बर , पहाड़ों की रानी मसूरी के हाथीपाँव में एक एतिहासिक कुआँ मौजूद है। प्रकृति की गोद में बने क़रीब दौ सौ साल पुराने इस कुँए को विशिंग वेल के नाम से जाना जाता है। 1829 के आस पास अंग्रेज़ आर्मी के एक आफ़िसर कर्नल विश ने मसूरी के हाथी पाँव में अपना घर बनवाया था। उस वक़्त हाथी पाँव में पानी की इतनी दिक़्क़तें थी कि खच्चरों पर पानी लाद कर यहाँ लाया जाता था। तब कर्नल विश ने तक़रीबन सात हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर यहाँ इस कुएँ का निर्माण कराया था। उन्हीं के नाम पर इसे विशिंग वेल कहा जाता है।

अमूमन पहाड़ों में पानी के कुएँ इतनी ऊँचाई पर नहीं होते। प्रदेश के सभी हिल स्टशनों में ये पहला कुआँ है जो इतनी ऊँचाई पर अंग्रेज़ों ने बनाया था। मसूरी के लोगों के मुताबिक़ सर जार्ज एवेरेस्ट भी इसी कुएँ का पानी इस्तेमाल करते थे। क़रीब 192 साल बाद भी आज ये विशिंग वेल लोगों की ज़रूरतें पूरी करने का काम करता है। आज इस कुँए का पानी बहुत कम हो गया है मगर हाथी पाँव,कलाउड एंड और जार्ज एवरेस्ट के लोग इसी कुएँ से अपनी ज़रूरतें पूरी करते हैं। मसूरी में मौजूद हाथीपाँव, जोर्ज़ एवरेस्ट, क्लाउड एंड समेत आसपास घूमने आने वाले पर्यटक इस कुएँ को देखने ज़रूर आते हैं।

इस कुएँ को लेकर कुछ लोग ये भी कहते हैं कि इसमें सिक्का या अँगूठी डालने पर मुरादें भी पूरी होती हैं। इसीलिए इसे विशिंग वेल भी कहा जाता है। हालाँकि कुछ लोग ये मानते हैं कि कर्नल विश के नाम पर इसका नाम विशिंग वेल पड़ा। ये कुआँ अपने इतिहास को संजोय इस कुएँ का पानी पिछले कुछ सालों में कम हुआ है। इसलिए लोग खासे चिंतित भी हैं कि ये एतिहासिक कुँआ कहीं ख़ुद इतिहास ना बन जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top