जकार्ता की राह पर है जोशीमठ का वजूद !

भारत के जोशीमठ की खबरों को सुनकर लोग सोच रहे होंगे कि ये अनोखा शहर है जिसे प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखा रही है पर ऐसा नहीं है। दुनिया में एक ऐसा भी शहर है जिसकी आबादी एक करोड़ से ज्यादा है और वह इतनी तेजी से धरती में समा रहा है कि आने वाले कुछ समय में पूरी तरह से जमीनी दल-दल के अंदर होगा। इसके बाद समुद्र इसे अपने आगोश में ले लेगा। हम बात कर रहे हैं इंडोनेशिया की राजधानी और सबसे बड़े शहर जकार्ता के बारे में, जहां आने वाला भविष्य निश्चित ही संकट में है।

वैज्ञानिक बताते हैं कि उत्तरी जकार्ता में हर साल 25 सेंटीमीटर की दर से जमीन नीचे धंस रही है। इसकी वजह से मकान क्षतिग्रस्त हो रहे हैं और नदियों व समुद्र का पानी शहर को डुबाने लगा है। समुद्र का पानी तेजी से आने पर यहां बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं। सबसे बड़ी समस्या ये है कि जमीन धंसने से पानी वही ठहर जाता है, जिसने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है।

अब बात करते हैं आदि जगतगुरु शंकराचार्य की तपोभूमि और कत्यूरी राजाओं की राजधानी रहा जोशीमठ की जो आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। सातवीं शताब्दी के उत्तराखंड का प्राचीन नगर जोशीमठ भू-धंसाव की चपेट में है। यहां के लोग दहशत में हैं। न उनका घर है और न ठिकाना। इस डरावने मंजर में यहां के लोगों को न भूख लग रही है न प्यास और न ही नींद आ रही है। उन्हें केवल अपने जीवन को बचाने के लिए सुरक्षित जमीन और छत चाहिए।

कुछ महीने पहले जो जोशीमठ बाहरी पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की आवाजाही के कारण गुलजार रहता था, आज यह अजीब सी खामोशी ओढ़े हुए है जिसमें केवल सिसकियां ही सुनाई दे रही हैं। जानकारों का कहना है आधा जोशीमठ असुरक्षित है और इसके लिए वे विकास की खातिर बड़ी परियोजनाओं को जिम्मेदार ठहराते हैं। अब इन परियोजनाओं पर काम रोक दिया गया है। गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार एक हजार से ज्यादा भवन ढहने की स्थिति में हैं। विशेषज्ञों की अगुआई में बनी कमेटियों ने विकास को खतरे की घंटी ठहराने वाली कई रिपोर्ट दीं थीं, लेकिन सरकारों के कानों पर जू तक नहीं रेंगी।

अध्यात्म के जरिए आत्म शांति का संदेश देने वाला जोशीमठ आज खुद अशांत है। यहां के घर हों या मंदिर या सरकारी अधिष्ठान या व्यापारिक प्रतिष्ठान सभी भू-धंसाव की जद में हैं। 2500 साल पहले आदि जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिष मठ और नरसिंह मंदिर में भी दरारें पड़ चुकी हैं। एक मंदिर ढह चुका है। 14 जनवरी मकर संक्रांति के बाद जोशीमठ के कई परिवारों ने उत्तरायणी में शुभ कार्य जनेऊ, मुंडन और विवाह करवाने की तैयारी कर रखी थी।

जोशीमठ के दौरे पर गए विशेषज्ञों के दल का जोशीमठ की महिलाओं ने घेराव किया था और उन्हें अपने खेत-खलिहान-मकान दिखाए और कहा कि उन्हें ऐसा विकास नहीं चाहिए जो हमारा विनाश करें। रोते हुए एक वृद्ध महिला ने कहा कि ऐसे विकास का क्या फायदा जो जिंदगी के अंतिम मुहाने पर बैठे बुजुर्गों के लिए मौत से भी बदतर हो और इतिहास ये कहे कि देवभूमि में एक था जोशीमठ

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