कीजिये यात्रा तुंगनाथ धाम की – पढ़िए महिमा शिव धाम की 

देवभूमि के कण कण में देवताओं का वास है इस धरती को शिव धाम और तीर्थ धाम भी कहते हैं। आज काम आपको तुंगनाथ मंदिर की रोचक जानकारी दे रहे हैं जिसको दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर माना जाता है. यह 3680 मीटर (12,073 फीट) की ऊंचाई पर उत्तराखंड के चन्द्रनाथ पर्वत पर स्थित है. मंदिर का शाब्दिक अर्थ पहाड़ों का भगवान होता है. प्राचीन मंदिर का इतिहास महाभारत जितना पुराना है. आइये जानते हैं भगवान शिव के सबसे ऊंचे मंदिर से जुड़ी दिलचस्प बातें.

भगवान शिव हिंदू धर्म के त्रिदेवों में से एक हैं. भोलेनाथ को देवों का देव भी कहा जाता है. भारत में उत्तर से दक्षिण तक शिव जी के कई सार मंदिर मिलते हैं. क्या आप जानते हैं दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर कौन सा है? यह है उत्तराखंड का तुंगनाथ मंदिर. तुंगनाथ शिव जी के पंच केदार में से एक है. उत्तराखंड में मौजूद 5 प्राचीन और पवित्र मंदिरों को पंच केदार कहते हैं. महाशिवरात्रि के मौके पर चलिए जानते हैं भगवान शिव के सबसे ऊंचे मंदिर से जुड़ी दिलचस्प बातें.

तुंगनाथ मंदिर 3680 मीटर (12,073 फीट) की ऊंचाई पर चन्द्रनाथ पर्वत पर स्थित है. यह उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में मौजूद है. मंदिर का शाब्दिक अर्थ पहाड़ों का भगवान होता है. तुंगनाथ दर्शन के लिए सोनप्रयाग पहुंचना होता है. इसके बाद गुप्तकाशी, उखीमठ, चोपटा होते हुए तुंगनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं. मंदिर का इतिहास महाभारत जितना पुराना है. शास्त्रों के अनुसार, मंदिर की नींव अर्जुन ने रखी थी, जो पांडव भाइयों में तीसरे सबसे बड़े भाई थे.

तुंगनाथ मंदिर से जुड़ी महाभारत की पौराणिक कथा

तुंगनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर एक कथा प्रचलित है. माना जाता है कि हजारों साल पहले पांडव भाइयों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मंदिर यह बनाया था. दरअसल, महाभारत के युद्ध में पांडवों ने अपने भाइयों और गुरुओं को मार डाला था. पांडवों पर अपने रिश्तेदारों की हत्या का पाप था. उस समय ऋषि व्यास ने पांडवों को बताया कि वे तभी पापमुक्त होंगे जब भगवान शिव न उनको माफ करेंगे. तब पांडवों ने शिव की तलाश शुरू कर दी और वो हिमालय जा पहुंचे. काफी मेहनत के बाद, भगवान शिव उन्हें भैंस के रूप में मिले. हालांकि, भगवान शिव ने उन्हें टाल दिया क्योंकि उन्हें पता था कि पांडव दोषी थे. भगवान शिव भूमिगत हो गए. बाद में उनके शरीर (भैंस) के अंग पांच अलग-अलग जगहों पर उठे.

जहां-जहां ये अंग प्रकट हुए, पांडवों ने वहां शिव मंदिर बनवाएं. भगवान शिव के इन पांच भव्य मंदिरों को ‘पंच केदार’ कहा जाता है. प्रत्येक मंदिर को भगवान शिव के शरीर के एक भाग के साथ पहचाना जाता है. तुंगनाथ पंचकेदार में से तीसरा (तृतीयाकेदार) है.तुंगनाथ मंदिर की जगह पर भगवान शिव के हाथ मिले थे. मंदिर का नाम भी इसी के आधार पर रखा गया. तुंग मतलब हाथ और नाथ का संदर्भ भगवान शिव से है.‘पंच केदार’ में तुंगनाथ मंदिर के अलावा केदारनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर शामिल हैं. केदारनाथ में भगवान की कूबड़ प्रकट हुई. इसके अलावा रुद्रनाथ में उनका सिर; कल्पेश्वर में उनके बाल; और मैड`महेश्वर में उनकी नाभि प्रकट हुई.

पुराणों में तुगनाथ का संबंध भगवान राम से भी बताया जाता है. श्रीराम तुंगनाथ से डेढ़ किलोमीटर दूर चंद्रशिला पर पर ध्यान करने आए थे. कहते हैं कि लंकापति रावण का वध करने के बाद श्रीराम के ऊपर ब्रह्म हत्या का पाप लगा था. इस पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने चंद्रशिला की पहाड़ी पर कुछ समय तक रहकर ध्यान किया था. चंद्रशिला की चोटी 14 हजार फीट की ऊंचाई पर है.

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