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बाघों की सुरक्षा में उत्तराखंड है नंबर वन

16 सालों में बाघों की संख्या 178 से 560 तक पहुंचीः डा. समीर सिन्हा

प्रमुख वन सरंक्षक वन्यजीव उत्तराखंड डा. समीर सिन्हा ने जारी किया आंकड़ा, तीन गुना बढ़ी संख्या

पिछले 16 सालों में उत्तराखंड में बाघों की संख्या में तीन गुना इजाफा हुआ है। प्रमुख वन सरंक्षक वन्यजीव उत्तराखंड डा. समीर सिन्हा के अथक प्रयासों से उत्तराखंड बाघों के लिए सेफ जोन बन गया है। जिसके सुखद परिणाम सामने आए हैं। प्रमुख वन सरंक्षक वन्यजीव उतराखंड डा. समीर सिन्हा ने बाघों की संख्या को लेकर सफल आंकड़ा जारी किया है। उन्होंने खुशी जताते हुए बताया कि साल 2006 से 2022 तक उत्तराखंड में बाघों की संख्या 178 से बढकर 560 हो गई है।

प्रमुख वन सरंक्षक वन्यजीव उतराखंड डा. समीर सिन्हा ने बताया कि यह आंकडा विभाग के सफल प्रयासों का नतीजा है। प्रदेश में बाघों की संख्या में पिछले 16 वर्षों में तीन गुणा से भी अधिक वृद्धि हुई है। पूरे विश्व में बाघों का सर्वाधिक घनत्व उत्तराखडं में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अंकित किया गया है। पिछले चार वर्षों में यह वृद्धि 26 प्रतिशत से अधिक है। बाघ की अधिकतम अनुमानित आयु 10 से 12 वर्ष मानी जाती है। भारत में इस वर्ष राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण द्वारा 14 नवम्बर 2023 तक 159 बाघों की मृत्यु का विवरण अंकित किया गया है जो कि विगत वर्षों में अभी तक सर्वाधिक है। 158 बाघों की मृत्यु के विवरण के अनुसार सर्वाधिक मृत्यु को 37 घटनाएं मध्य प्रदेश से है। जहां बाघों की वर्ष 2022 में अनुमानित संख्या 785 आंकी की गई थी। महाराष्ट्र में भी इस वर्ष 37 बाघों की मृत्यु आंकी की गई। वर्ष 2022 में बाघों की अनुमानित संख्या 444 आंकी गई। वहीं तमिलनाडु राज्य में 15 बाघों की मृत्यु आकी गई है जहां बाघों की वर्ष 2022 में अनुमानित संख्या 306 आंकी गई। केरल में 13 बाघों की मृत्यु हुई और वहां 2022 में बाघों की अनुमानित संख्या 213 आंकी गई है। उत्तराखंड में प्रदेश में बाघों की मृत्यु की संख्या को लेकर जन.मानस में इनकी मृत्यु की चिंता सकारात्मक है। परंतु प्रदेश में बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए वर्तमान मृत्यु की संख्या असमान्य अथवा अप्रत्याशित नहीं मानी जानी चाहिए। प्रदेश में बाघों की आबादी के अनुसार यह मृत्यु दर 34 प्रतिशत है जो अपेक्षित से इतर नहीं है। बाघों की यह मृत्यु दर अन्य अनेक राज्यों की तुलना में अत्यंत न्यूनतम है।

बाघों की मृत्यु से बचाव को लेकर उठा रहे ठोस कदम
प्रमुख वन सरंक्षक वन्यजीव उतराखंड डा. समीर सिन्हा ने बताया कि बाघों की मृत्यु की संख्या के साथ.साथ इनके मृत्यु के कारणों की समुचित विवेचना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। अभी तक के प्रत्येक प्रकरण में बाघों की मृत्यु के कारणों की गहनता से जांच की गई है। किसी भी प्रकरण में ऐसे मृत्यु का कोई असामान्य अथवा मानव जनित कारण प्रकाश में नही आया है। कुछ प्रकरणों में जांच अभी प्रगति में है तथा उनका भी विवरण प्राप्त होने पर निष्कयों के आधार पर अपेक्षित कार्यवाही की जायेगी। बाघों के मृत्यु की रोकथाम को लेकर ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। जिसमें बाघों के वासस्थल वाले क्षेत्र में सघन गश्त बढ़ा दी गई है तथा उसका अनुभवण भी नियमित रूप से संबंधित वन संरक्षक एवं मुख्य वन संरक्षक द्वारा की जा रही है। घने जंगलों में ऐसे किसी वन्यजीव की प्राकृतिक मृत्यु होने पर उनके शव को गश्त के दौरान खोज पाना भी कठिन होता है। वन कर्मियों को कड़े निर्देश है कि ऐसे किसी भी प्रकरण के प्रकाश में आने पर गहन छानबीन कर समस्त तथ्य सामने लाएं जाएं। आम जनता के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया गया है।

उत्तराखंड वन्यजीव हेल्पलाईन – 18008909715

उत्तराखण्ड में बाघों की मृत्यु की संख्या
वर्ष 2019 – 13
वर्ष 2020 – 06
वर्ष 2021 – 10
वर्ष 2022 – 09
वर्ष 2023 14 नवम्बर तक – 19

उत्तराखण्ड में वर्ष 2006 से 2022 तक बाघों की अनुमानित संख्या –
वर्ष 2006 – 178
वर्ष 2010 – 227
वर्ष 2014 – 340
वर्ष 2018 – 442
वर्ष 2022 – 560

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