उत्तराखंड की महिलाओं को नौकरी में 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण के मसले की सरकार हाईकोर्ट में ठीक से पैरवी नहीं कर पाई। यही वजह है कि इस पर रोक लगी है। महिलाओं को इसका लाभ मिलता रहे इसके लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट जाए या फिर इसके लिए अध्यादेश लाए। महिलाएं मजबूती से आगे बढ़े इसके लिए उन्हें नौकरी में आरक्षण का लाभ मिलता रहना चाहिए। ये कहना है प्रदेष महिला कांग्रेस अध्यक्ष ज्योति रौतेला का जिनके नेतृत्व में महिला कोंग्रेसियों ने सीएम आवास पर हंगामा किया और सरकार पर अदालत में कमजोर पैरवी करने का आरोप लगाया है। इनकी मांग है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाये।
कांग्रेस नेत्रियों का कहना है कि उत्तराखंड की महिलाओं ने चुनौतियों का मुकाबला कर जन आंदोलनों को मुकाम तक पहुंचाया। बात चाहे स्वतंत्रता आंदोलन की हो या राज्य गठन के आंदोलन की। महिलाओं ने अपने संघर्ष से इन आंदोलन को कामयाबी दिलाई है। इसके अलावा प्रदेश में पेड़ को कटाने को रोकने के लिए चिपको आंदोलन और नशे बढ़ती प्रवृत्ति के खिलाफ भी महिलाओं ने आवाज को बुलंद किया। उत्तराखंडी महिलाएं अपने सीमित दायरे और सामाजिक रूढ़िवादिता के बावजूद हर समस्या के समाधान के लिए लड़ाई लड़ने में अग्रिम पंक्ति में रही हैं। उन्होंने अपने आंचल को हमेशा ही इंकलाबी परचम बना दिया।
अध्यक्ष रौतेला ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को देखा जाए तो उत्तराखंड की नारियों ने इस आंदोलन में अहम भूमिका निभाई है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महिलाओं की अहम भूमिका रही है। 1994 में उत्तराखंड की महिलाओं ने अलग राज्य की मांग को लेकर सड़कों पर उतर कर आंदोलन किया।
इस दौरान प्रदेष उपाध्यक्ष आशा मनोरमा डोबरियाल शर्मा, अनुराधा तिवारी, कोमल बोहरा, संगीता गुप्ता, चन्द्रकला नेगी, पुश्पा पंवार, शिवानी थपलियाल, मीना बिश्ट, ममता शाह , शशिबाला कन्नौजिया, अंषुल त्यागी, सर्वेष्वरी, सुषीला षर्मा, मुकुन्दी, राधिका शर्मा, मौजूद रहीं।